भोपाल। विधानसभा का उपचुनाव हार जाने के बावजूद मंत्री पद से चिपके रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक गिर्राज दंडोतिया आज 'पूर्व' हो गए। आज के बाद उनकी पहचान पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक की होगी। इसी प्रकार ज्योतिरादित्य सिंधिया की ब्रांड एंबेसडर बनी इमरती देवी का जलवा भी खत्म हो गया है। अब उन्हें ग्वालियर का वह सरकारी बंगला छोड़ना होगा, जिसका नोटिस मिलने पर उन्होंने एक अधिकारी को भोपाल अटैच करवा दिया था।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के दबाव में मुख्यमंत्री ने इस्तीफा स्वीकार नहीं किया था
मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया के अलावा एदल सिंह कंषाना उप चुनाव हार गए थे। कंषाना ने तो चुनाव हारने के 48 घंटे बाद ही मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, जबकि दंडोतिया ने 9 दिन और इमरती देवी ने सिंधिया से मुलाकात करने के बाद 24 नंवबर को मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। सरकार ने कंषाना का इस्तीफा 27 नंवबर को स्वीकार कर लिया था, लेकिन राजनीतिक चर्चाओं में कहा गया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के दबाव के कारण मुख्यमंत्री ने इमरती देवी और दंडोतिया का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया था। आज कैबिनेट विस्तार से पहले सिंधिया के कोटे से दो मंत्री कम किए गए और उनकी जगह पर दो नए मंत्रियों को शपथ दिलाई गई।
इमरती देवी और दंडोतिया अधूरे कानून का फायदा उठा रहे थे
दरअसल, कानून में व्यवस्था है कि मुख्यमंत्री किसी भी आम नागरिक को मंत्री बना सकते हैं परंतु शपथ ग्रहण के 6 महीने के भीतर उस व्यक्ति को चुनाव लड़कर विधायक बनना होगा अन्यथा उसका मंत्री पद स्वत: समाप्त हो जाएगा। इस नियम में यह नहीं बताया गया कि यदि 6 महीने से पहले चुनाव होता है और मंत्री चुनाव हार जाता है तो उसका मंत्री पद चुनाव चुनाव परिणाम आते ही स्वत: समाप्त होगा या नहीं। अब से पहले तक चुनाव हारने के बाद नैतिकता के नाते नेता लोग इस्तीफा दे दिया करते थे। एदल सिंह कंसाना ने भी ऐसा ही किया लेकिन श्रीमती इमरती देवी और श्री गिरराज दंडोतिया इसी अधूरे नियम का फायदा उठा रहे थे और चुनाव हारने के बाद भी मंत्री बने हुए थे।