इंदौर। भारत के प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए आयोजित होने वाली परीक्षा (National Eligibility Cum Entrance Test - NEET) में अनारक्षित श्रेणी के कटऑफ से ज्यादा अंक लाने के बाद भी कैंडिडेट को एडमिशन नहीं दिया गया क्योंकि कैंडिडेट ने पिछड़ा वर्ग कोटे में अप्लाई किया था और एडमिशन के समय वह अपना जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं कर पाया। कैंडिडेट ने मांग की है कि उसे अनारक्षित श्रेणी में मानते हुए एडमिशन दिया जाए। चिकित्सा शिक्षा विभाग इसके लिए तैयार नहीं है। विवाद हाईकोर्ट में पहुंच गया है। हाई कोर्ट ने नोटिस जारी करके कारण पूछा है।
मामला परीक्षार्थी ऋतिक नागर का है। वे मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए होने वाली नीट में शामिल हुए थे। उन्होंने अन्य पिछडा वर्ग (OBC) श्रेणी से आवेदन किया था। परीक्षा में ऋतिक को 534 अंक हासिल हुए। मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए अनारक्षित वर्ग का कटऑफ 499 था। यानी इतने अंक प्राप्त करने वाले अनारक्षित वर्ग के परीक्षार्थी को चिकित्सा शिक्षा विभाग ने मेडिकल कॉलेज में प्रवेश दे दिया, लेकिन ऋतिक को प्रवेश नहीं मिला।
रिजल्ट आने के बाद कैंडिडेट कैटेगरी नहीं बदल सकता: चिकित्सा शिक्षा विभाग
चिकित्सा शिक्षा विभाग का कहना था कि ऋतिक आरक्षित वर्ग OBC का सर्टिफिकेट प्रस्तुत नहीं कर सके। इस पर ऋतिक ने चिकित्सा शिक्षा विभाग से गुहार लगाई कि उनके अंक अनारक्षित वर्ग के परीक्षार्थी से ज्यादा हैं इसलिए उन्हें अनारक्षित वर्ग की सीट पर प्रवेश दे दिया जाए, लेकिन विभाग ने उनकी बात नहीं सुनी।
हाईकोर्ट ने पूछा कि कैंडिडेट में टॉप किया तो फिर एडमिशन क्यों नहीं दिया
इस पर ऋतिक ने जबलपुर के एडवोकेट आदित्य संघी के माध्यम से मप्र हाई कोर्ट की इंदौर बेंच में याचिका दायर की। जस्टिस सुजॉय पॉल, शैलेंद्र शुक्ला की युगलपीठ ने चिकित्सा शिक्षा विभाग को नोटिस जारी कर पूछा है कि जब परीक्षार्थी अनारक्षित वर्ग के परीक्षार्थी से ज्यादा अंक लाया है तो उसे प्रवेश क्यों नहीं दिया गया। एडवोकेट संघी ने बताया कि कोर्ट ने यह भी कहा है कि यह सीट याचिका के अंतिम निराकरण के अधीन रहेगी।