भारत की किसी भी मेट्रो सिटी में कितने भी महंगे मॉल से गुड़ खरीदिये उसकी कीमत ₹120 प्रति किलो से ज्यादा नहीं होगी लेकिन एक किसान ऐसा है जिसका गुण ₹5000 किलो बिक रहा है। उत्पादन से ज्यादा डिमांड है। सवाल यह है कि जब भारत के गांव-गांव में गुड़ मौजूद है तो फिर इतना महंगा गुड़ कौन बनाता है, क्यों बनाता है और सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि खरीदता कौन है। आइए जानते हैं इस गुड़ में क्या खास बात है:-
77 प्रकार का गुड, कीमत ₹80 से लेकर ₹5000 तक
पत्रकार श्री अश्वनी त्रिपाठी की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के सहारनपुर का एक गांव है मुबारकपुर। यहीं के किसान संजय सैनी दस एकड़ में न केवल जैविक विधि से गन्ने की खेती कर रहे हैं, वरन रसायनमुक्त गन्ने को चीनी मिल में बेचने की जगह अपने कोल्हू पर 77 प्रकार का गुड़ भी बना रहे हैं। इनकी कीमत 80 रुपये से लेकर 5000 रुपये प्रति किलो तक है।
च्यवनप्राश से ज्यादा गुणकारी है संजय सैनी का गुड, दुर्लभ जड़ी बूटियां मिलाई हैं
गुड़ की ऐसी आसमानी कीमत सुनकर हर कोई हैरान हो जाता है। सबकी हैरानी दूर करते हुए संजय दावा करते हैं कि पांच हजार रुपये प्रति किलो वाला गुड़ च्यवनप्राश से भी ज्यादा खूबियों से समृद्ध है। च्यवनप्राश बनाने में जितने प्रकार की सामग्री (जड़ी-बूटी आदि) लगती हैं, इस गुड़ में उससे भी ज्यादा सामग्री मिलाई जाती है। संजय को अपना गुड़ बेचने कहीं जाना नहीं पड़ता, उनका पूरा गुड़ घर से ही बिक जाता है, इस गुड़ के खरीदार पूरे देश में हैं।
₹5000 किलो वाली गुड में स्वर्ण भस्म और 80 जड़ी बूटियां
गुड़ को लेकर अब खासे चर्चित हो चले संजय सैनी देश भर में लगने वाली कृषि प्रदर्शनियों में जाते हैं और विभिन्न जड़ी-बूटियों से बने 77 प्रकार के गुड़ लोगों के सामने रखते हैं। संजय बताते हैं, उनका गुड़ सामान्य नहीं है। यह जैविक गन्ने से तैयार होता है, इसमें विभिन्न दुर्लभ जड़ी-बूटियां मिली हैं, यह कई प्रकार के रोगों में कारगर है। ऐसे में जड़ी-बूटियों की कीमत के अनुसार ही गुड़ की कीमत भी निर्धारित होती है। पांच हजार रुपये प्रति किलो वाले गुड़ में स्वर्ण भस्म के अतिरिक्त 80 प्रकार की जड़ी-बूटियां मिलाई जाती हैं। पांच हजार रुपये किलो वाले गुड़ की मांग अभी पांच सौ किलो प्रतिवर्ष है।
आइडिया कहां से आया, स्टार्टअप कैसे किया
गन्ना मिलों पर बकाए को लेकर परेशान रहने वाले किसानों के लिए संजय सैनी ने एक रास्ता खोला है। संजय बताते हैं कि वर्ष 2000 में उन्होंने जैविक गन्ने की खेती की ओर रुख किया। फसल अच्छी हुई तो उसे मिल में बेचने की जगह स्वयं के कोल्हू पर ही जैविक गुड़ बनाने का सिलसिला शुरू कर दिया। गुड़ बनाते समय गन्ने के रस को साफ करने के लिए भी किसी केमिकल का प्रयोग करने की जगह सरसों के तेल, दूध और अरंडी के तेल का प्रयोग शुरू किया।
ऑर्गेनिक गुड़ बनाने में कितने लोगों की जरूरत है
धीरे-धीरे उनके जैविक गुड़ के कद्रदान बढ़ते गए। सराहना मिली तो हौसला भी बढ़ा, परिणाम अब सामने है। आज उनके कोल्हू पर आसपास के 10 लोगों को रोजगार भी मिला हुआ है। संजय सैनी ने जड़ी-बूटियों से संबंधित कई पुस्तकों का अध्ययन किया था। जैविक गुड़ बनाने में उनका यह ज्ञान काम आया। किस गुड़ में किस सामग्री और जड़ी-बूटी को कितनी मात्र में डालना है, यह अनुपात उन्हें पठन-पाठन और अपने अनुभव से मिला।
हर बीमारी के लिए अलग तरह का गुड
केमिकल का प्रयोग किए बिना गुड़ को लंबे समय तक फफूंद से बचाना आसान नहीं था। संजय ने प्रयोग किया और दूब, एलोवेरा व तुलसी के रस से गुड़ पर कोटिंग कर उसे लंबे समय तक फफूंद से बचाने में कामयाबी पाई। संजय बताते हैं कि बिहार और बंगाल में हींग जैसा स्वाद देने वाले गुड़ की अधिक मांग रहती है, तो वहां के लिए वैसा ही गुड़ बनाते हैं। पित्त रोकने के लिए अजवायन, सौंफ और धनिया मिश्रित गुड़ खूब पसंद किया जा रहा है। वात के लिए मेथी व काले जीरे का गुड़ रामबाण है।