देश जिस परिस्थिति से गुजर रहा है उसमे अर्थव्यवस्था में सुधार के उम्मीद भरे संकेत एक अबूझ प्रश्न हैं। अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि देश कोरोना संकट से पहले की अवस्था में शीघ्र पहुंच जायेगा, लेकिन देश-विदेश की वित्तीय निगरानी करने वाली संस्थाएं और एजेंसियां संकेत दे रही हैं कि देश आने वाले वित्तीय वर्ष में तेज आर्थिक रफ्तार पकड़ेगा। काश ऐसा ही हो, अपने देश के लिए शुभ, सार्थक और सत्य चिन्तन से बड़ा कोई राष्ट्र हित नहीं हो सकता |
पिछले दिनों कई दिनों से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि अर्थव्यवस्था महामारी के दौर से निकल रही है और जीडीपी पटरी पर लौटने को है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारतीय आर्थिकी का उत्साहजनक आकलन प्रस्तुत किया कि वर्ष २०२२ में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर ११.५ प्रतिशत रहेगी। साथ ही यह भी कि दो अंकों में गिनी जाने वाली यह दुनिया की एकमात्र अर्थव्यवस्था होगी। यह आकलन कुछ समय पहले ८.८ प्रतिशत किया गया था। यह सत्य है भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर लौट रही है। निस्संदेह यह आकलन देश की उम्मीद बढ़ाने वाला है लेकिन इसके बावजूद यह प्रगति इस बात पर निर्भर करेगी कि हम महामारी के प्रभाव को दूर करने वाले लक्ष्यों को किस हद तक पूरा कर पाते हैं।
अनुमान है कि देश की अर्थव्यवस्था उम्मीद से बेहतर परिणाम देगी, लेकिन जरूरत इस बात की भी है कि उत्साहवर्धक विकास की किरण हर आम आदमी तक भी पहुंचे। सीधे शब्दों में विकास समाज में तेजी से बढ़ रही असमानता की खाई को भी दूर करे। हाल ही में जारी ऑक्सफैम की रिपोर्ट ने बताया था कि कोरोना संकट के दौरान जहां देश के उद्योग धंधे और विभिन्न क्षेत्र रोजगार के संकट से जूझ रहे थे, तमाम लोगों के रोजगार छिने व वेतन में कटौती की गई तो उसी दौरान देश के शीर्ष धनाढ्य वर्ग की आय में पैंतीस फीसदी की वृद्धि हुई जो हमारे विकास की विसंगति को दर्शाता है कि जहां देश का बड़ा तबका लॉकडाउन के दंश झेल रहा था तो एक वर्ग संकट में मालामाल हो रहा था।
आज सरकार की प्राथमिकता उद्योग व कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने पर है और होना भी चाहिए ताकि रोजगार के अवसर बढ़ें और निर्यात को गति मिल सके। निस्संदेह जब देश के नागरिकों की क्रय शक्ति बढ़ेगी तो मांग व खपत का चक्र बढ़ सकेगा, जिससे अर्थव्यवस्था से मंदी का साया दूर हो सकेगा। कोरोना संकट के जख्मों से उबर रहे देश में नये बजट से उम्मीद है | साथ ही इस बात उम्मीद भी कि विकास का लाभ हर वर्ग को मिले। यानी अर्थव्यवस्था में उत्साहवर्धक विकास का लाभ समाज में विषमता की खाई को भी दूर करे।
उम्मीद की जा रही है कि अनलॉक की प्रक्रिया के दौरान केंद्र सरकार के वित्तीय व मौद्रिक उपायों का असर अर्थव्यवस्था पर जल्दी नजर आये। निस्संदेह महामारी ने भारत ही नहीं, पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को झकझोरा है। अब देखना है कि कुशल वित्तीय प्रशासन से हम इस संकट से कितनी जल्दी उबर पाते हैं।
भारत जैसी विकासोन्मुख अर्थव्यवस्था में निवेश की अपार संभावनाएं हैं। इस दौरान विदेशी निवेश बढ़ा भी है। यह भी देखना होगा कि आत्मनिर्भर भारत की मुहिम में हम किस हद तक सफल हो पाते हैं। यह अच्छी बात है कि देश कोविड की महामारी से धीरे-धीरे मुक्त हो रहा है। देश में निर्मित दो वैक्सीनों की सफलता और सफल टीकाकरण अभियान ने देश में आत्मविश्वास जगाया है।
यह आत्मविश्वास अंतत: अर्थव्यवस्था के तेज विकास में सहायक बनेगा। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि कोरोना संकट के दौरान कृषि क्षेत्र ने बेहतर परिणाम दिये। ऐसे में इस क्षेत्र के तेज विकास हेतु निवेश को बढ़ाना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। बेहतर मानसून और रबी फसल की बेहतर उम्मीदें कृषि क्षेत्र में नये विश्वास को जगा रही हैं। सरकार की कोशिश हो कि कृषि सुधार कानूनों को लेकर जो देशव्यापी अविश्वास पैदा हुआ है, उसे दूर किया जाये। उम्मीद है कि सरकार जल्दी ही कृषि क्षेत्र के लिये विशेष सौगात लेकर आयेगी। उसकी प्राथमिकता कोरोना संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित सेवा क्षेत्र और एमएसएमई को उबारने की होगी। बैंकों के क्रेडिट डिमांड में बढ़ोतरी भी अच्छा संकेत है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।