भोपाल। मध्य प्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार से संबंधित एक आवेदन की सुनवाई करते हुए कलेक्टरों को 3 महीने का समय दिया है। आदेशित किया गया है कि इस अवधि के भीतर उन सभी मामलों को वेबसाइट पर अपलोड किया जाए जिसमें ग्राम पंचायतों के जनप्रतिनिधि भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए हैं।
धारा-40 और 92 की कार्रवाई में पारदर्शिता का अभाव
राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अपने आदेश में कहा कि अभी जिले से लेकर ग्राम पंचायत स्तर तक धारा-40 और 92 की कार्रवाई में पारदर्शिता का अभाव है, जिसके चलते इन प्रकरणों में की गई कार्रवाई की जानकारी प्रभावित व्यक्तियों एवं आम जनता की पहुंच में नहीं है। सिंह ने अपने निर्णय में ये भी कहा कि धारा-40 की व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए समय-समय पर शासन स्तर पर कई निर्णय लिए गए। ज़मीनी स्तर पर उनका पालन नहीं किया जा रहा है।
किसी भी कलेक्टर ने पंचायत विभाग मंत्रालय के निर्देश का पालन नहीं किया
राज्य सूचना आयोग ने अपने निर्णय में अवर मुख्य सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा जारी 2016 में दिशा-निर्देश का उल्लेख किया है। इसमें निर्देश दिया गया था कि जिलास्तर पर मासिक बैठक की जाए और धारा-40 के तहत कार्यवाही निर्धारित 4 महीने की समय अवधि में सुनिश्चित की जाए। साथ ही प्रत्येक माह की गई कार्रवाई से भोपाल पंचायत राज मंत्रालय को ई-मेल के माध्यम से सूचित करने के भी निर्देश थे। अवर मुख्य सचिव ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि अगर 4 महीने में निराकरण नहीं किया गया तो यह विधि का उल्लंघन है और संबंधित जिले के अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन किसी भी जिले के कलेक्टर द्वारा ये जानकारी नियमित रूप से हर महीने मॉनिटरिंग करके भोपाल मंत्रालय में नहीं भेजी जाती है।
वहीं जिन मामलों में मंत्रालय स्तर पर आदेश जारी कर कार्यवाही की जाती है, उसमें अक़्सर कार्यवाही नहीं होती है। सिंह ने अपने आदेश में अवर मुख्य सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा जारी 2020 के आदेश का जिक्र भी किया है, जिसमें प्रदेश के सभी जिलों के कलेक्टरों को पंचायत में हुए गबन के मामलों में दोषी पदाधिकारियों की सेवा समाप्ति से लेकर उनके विरुद्ध आपराधिक प्रकरण तक कायम करने के निर्देश जारी हुए थे।
क्या असर होगा जानकारी सावर्जनिक करने से
राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अपने आदेश में कहा कि मांगी गई जानकारी के दो आयाम है। एक तो जिस प्रभावित व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई हो रही है, उसको भी यह जानने का हक है कि उसके खिलाफ किस आधार पर कार्रवाई की गई है। दूसरा आम जनता जिन्हें यह जानने का हक है कि उनके चुने हुए प्रतिनिधि एवं शासकीय कर्मचारी को किस गबन के आधार पर हटाया गया एवं शासकीय राशि की वसूली के लिए क्या कार्रवाई की गई। सिंह का मानना है यह जानकारी पब्लिक प्लेटफॉर्म पर आने से पंचायत राज व्यवस्था में कसावट के साथ-साथ भ्रष्टाचार निरोधी पारदर्शी व्यवस्था सुनिश्चित हो सकेगी। इस आदेश के बाद मप्र के जिले से लेकर ग्राम पंचायत स्तर तक पंचायतों में भ्रष्टाचार से संबंधित की गई कार्यवाही कंप्यूटर के एक क्लिक पर कोई भी आम आदमी देख सकता है।
सूचना आयोग ने जानकारी देने के लिए प्रारूप जारी किया
राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने एक प्रारूप जारी किया है, जिसके तहत जानकारी को पब्लिक प्लेटफॉर्म पर साझा किया जाएगा। इस प्रारूप में 6 कॉलम है। इसमें ग्राम/जनपद/जिला पंचायत की जानकारी है। किस धारा के तहत की गई कार्यवाही एवं आदेश की प्रति अपलोड करने के साथ-साथ अगर F.I.R की कार्रवाई की गई है तो उसकी जानकारी का भी कॉलम है।
व्यवस्था बनाने के लिए 3 महीने का समय कलक्टरों को
इन प्रकरणो में कसावट लाने में सिंह ने अवर मुख्य सचिव सामान्य प्रशासन विभाग को निर्देशित किया है कि आयोग के आदेश की प्रति कलेक्टरों को भेजकर आदेश का पालन सुनिश्चित कराएं। आयोग ने कलेक्टरों को 3 महीने का समय दिया है यह जानकारी अपने जिले की वेब पेज पर साझा करें।
कलेक्टरों के विरुद्ध होगी ज़ुर्माने की कार्यवाही
आयुक्त राहुल सिंह ने आदेश में यह भी साफ किया है कि 3 महीने बाद अगर किसी व्यक्ति द्वारा यह शिकायत की जाती है कि उक्त जानकारी वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है तो आयोग धारा-18 के तहत लोक प्राधिकारी जिले के कलेक्टर को जिम्मेदार मानते हुए उनके विरुद्ध जुर्माने की कार्रवाई करेगा। धारा-18 में आयोग को सिविल कोर्ट की सीमित शक्तियां प्राप्त है, जिसमे आवेदक बिना अपील दायर किए सीधे आयोग में निःशुल्क शिकायत कर सकते है।
इस शिकायत पर की कार्रवाई
रीवा जिले के सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने पंचायत विभाग में हो रही कार्रवाई को प्राप्त करने की कोशिश की, लेकिन यह जानकारियां उन्हें अपील दायर करने के बाद भी उपलब्ध नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने इस प्रकरण की शिकायत की। इसमें उन्होंने रीवा जिले एवं अन्य जिलों में भी इस तरह की जानकारी उपलब्ध नहीं होने की बात राज्य सूचना आयोग के सामने की।