गद्दारी के कारण 3000 सैनिकों की टुकड़ी ने 30,000 की सेना को हराया था - REAL MOTIVATION STORY

Bhopal Samachar
किसी ने सच ही कहा है कि, एक योग्य और वफादार कर्मचारी अपनी कंपनी को करोड़ों का फायदा पहुंचाता है लेकिन यदि कंपनी में कोई गद्दार है तो वह एक ही झटके में कंपनी का दिवाला निकाल सकता है। कई बफादारों का संगठन सरकार बनाता है परंतु कई बार सिर्फ एक गद्दार पूरी सरकार गिरा देता है। एक छोटी सी कहानी, जो आपको बताएगी कि किस प्रकार गद्दारी के कारण 3000 सैनिकों की एक छोटी सी टुकड़ी ने 30,000 सैनिकों वाली विशाल सेना को हरा दिया था।

मात्र 1 दिन के युद्ध में 30,000 की विशाल सेना 3000 सैनिकों से हार गई

वह तारीख 23 जून 1757 थी। बंगाल के मुर्शिदाबाद स्थित विशाल जंग के मैदान में दो सेनाएं आमने सामने खड़ी थीं। एक तरफ से ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना जिसमें मात्र 3000 सैनिक थे और दूसरी तरफ थी बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की सेना जिसमें 30000 सैनिक थे। अपनी केस स्टडी का सब्जेक्ट यह नहीं है कि सेनाएं किस किस की थी, आज अपन सिर्फ इस बात पर डिस्कस कर रहे हैं कि दो सेनाएं थी एक तरफ 3000 और दूसरी तरफ 30,000 सैनिक। बावजूद इसके, मात्र 1 दिन के युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी की छोटी सी सेना जीत गई हो बंगाल के नवाब की विशाल सेना हार गई।

क्या हुआ था प्लासी के युद्ध में, विशाल सेना क्यों हार गई, गद्दार कौन था

मुर्शिदाबाद के मैदान में जंग के लिए जब दोनों सेनाएं आमने सामने थी तब बंगाल की सेना के प्रमुख सेनापति मीर जाफर ने अपने सैनिकों के साथ युद्ध लड़ने से इंकार कर दिया। उसका कहना था कि सैनिकों को वेतन नहीं दिया गया है। जब तक वेतन नहीं मिलेगा तब तक युद्ध नहीं लड़ेंगे। बंगाल के मजबूर नवाब को युद्ध के मैदान में सैनिकों का वेतन देना पड़ा। 

जून के महीने का अंतिम सप्ताह था। इसी रात अचानक बारिश हो गई और बंगाल की सेना का पूरा गोला बारूद पानी में खराब हो गया। क्योंकि प्रमुख सेनापति मीरजाफर में गोला बारूद को बारिश से बचाने का प्रबंध नहीं किया था। दूसरे दिन ईस्ट इंडिया कंपनी के पास कम मात्रा में ही सही लेकिन इतना गोला बारूद था कि 30000 की सेना में भगदड़ मचा सके। युद्ध का ऐलान हुआ तो ज्यादातर सैनिक युद्ध के मैदान में उपस्थित रहे परंतु उन्होंने लड़ाई नहीं लड़ी। सेनापति मीरजाफर के बेटे ने राजा नवाब को मार डाला। 

MORAL OF THE STORY 

आज अपना सब्जेक्ट यह नहीं है कि कौन सही था और कौन गलत, अब हम तो सिर्फ इस बात पर डिस्कस कर रहे हैं कि यदि राजा सतर्क होता और मीर जाफर को पहले ही ढूंढ लिया गया होता तो मैदान में पहुंचने से पहले ही युद्ध जीत लिया गया होता। मैनेजमेंट इसी को कहते हैं। मोरल ऑफ द स्टोरी यह है कि आप किसी कारपोरेट कंपनी के मैनेजमेंट में हो या फिर किसी सत्तारूढ़ पार्टी के मैनेजमेंट में, एक नजर यदि अपने शत्रुओं पर टिका कर रखना है तो दूसरी नजर से अपने पीछे खड़े लोगों में गद्दार की तलाश करते रहना भी जरूरी है। यदि चूक गए तो जो लोग आपके पीछे खड़े हैं वही आपकी कहानी को खत्म करने का कारण बन सकते हैं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article 

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