चमत्कारी पेड़ की वर्दी पहनकर लड़ रहे थे सैनिक: प्रथम विश्व युद्ध - GK IN HINDI

Bhopal Samachar
प्रथम विश्व युद्ध का अध्ययन करने वाले लोगों को ठीक प्रकार से पता है परंतु ज्यादातर लोग नहीं जानते कि इस युद्ध में सबसे ज्यादा सैनिक दुश्मन की गोली से नहीं बल्कि घावों में इन्फेक्शन के कारण मारे गए थे। क्योंकि युद्ध भूमि में मेडिकल सुविधाएं बहुत कम थी। ब्रिटिश सैनिकों ने इस समस्या का एक समाधान निकाला। अपनी वर्दी में एक ऐसा पौधा लगाया जो युद्ध के दौरान घायल शरीर का इलाज करता रहता था। आइए आज ऐसी चमत्कारी पौधे के बारे में जानते हैं:-

एक पौधा जो जमीन के कंडीशनर का काम करता है

कार्बोनिफरस काल (कोयला युग, coal era) से लेकर 21वीं सदी तक मोसेस का उपयोग कई रूपों में किया जाता रहा है। लेटिन या ग्रीक भाषा में मॉस का अर्थ होता है "आग के विरुद्ध" Or " Against fire "स्फैग्नम भी एक प्रकार की मॉस है। सड़ी हुई तथा सूख हुई स्फैग्नम को पीट मॉस (Peat moss) कहा जाता है, जो कि मिट्टी के लिए कंडीशनर का काम करती है  तथा fuel बनाने के लिए भी उपयोगी है। 

MOSS की खास बातें, प्रथम विश्व युद्ध में क्या उपयोग किया गया

मोसेस की बहुत अधिक अवशोषण क्षमता (हाई अब्जॉर्बिग कैपेसिटी) के कारण इनका उपयोग प्रथम विश्व युद्ध में सैनिकों के घावों की ड्रेसिंग करने में किया गया था। क्योंकि यह कॉटन यानी रुई से 3 गुना ज्यादा लिक्विड को अब्जॉर्ब कर लेता है और यह लिक्विड को एक जगह न करके पूरे में एक समान रूप से फैला देता है जो कि बहुत ठंडा, नरम और लैस इरिटेटिंग होता है। साथ ही इसमें एंटीबैक्टीरियल, एंटीमाइक्रोबियल गुण भी पाए जाते हैं, इस कारण इसका उपयोग चिकित्सा तथा क्लीनिकल क्षेत्रों में किया जाता है।

Tommy Atkins - ने प्रथम विश्व युद्ध के समय 1914 में पहली बार मॉस का उपयोग, अपने लिए एक प्रकार की बुलेट प्रूफ जैकेट बनाने के लिए किया था। 

Charles cat cart - ने  1916 में Tommy Atkins के कामों से प्रभावित होकर स्फैग्नम मॉस का प्रयोग सैनिकों के घावों की ड्रेसिंग में किया। मोसेस के कुछ अन्य उपयोग भी हैं जिन्हें हम और कभी जानेंगे। 

Pollution को खाने वाले पेड़

लंदन में कई सारी ऐसी संरचनायें हैं जिन्हें "city trees" कहा जाता है। इनमें मोसेस से भरी हुई दीवारें हैं, इनकी एयर क्लीनिंग कैपेसिटी यानी हवा को शुद्ध करने की क्षमता 275 सामान्य पेड़ों के बराबर होती है। लंदन में इन बिल्डिंगस् को "प्रदूषण को खाने वाले पेड़" Or "Trees that eat pollution " कहा जाता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article 

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