सामान्य प्रचलन में कोर्ट द्वारा जारी किए गए वारंट की तामील पुलिस डिपार्टमेंट द्वारा ही करवाई जाती है। यदि वारंट गिरफ्तारी है तब तो निश्चित रूप से उसकी तमिल पुलिस विभाग द्वारा कराई जाएगी परंतु दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 73 के अंतर्गत कोर्ट को यह अधिकार प्राप्त है कि अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए वारंट जारी करें और वारंट की तामील के लिए किसी भी स्थानीय नागरिक को नियुक्त करे। इस धारा के तहत वारंट की तामील कराना पुलिस का अधिकार नहीं है और ना ही न्यायालय इसके लिए बाध्य। न्यायालय अपने विवेकाधिकार पर डिसीजन ले सकता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 73 की परिभाषा: वारण्ट किसी भी व्यक्ति को दिया जा सकता है
1. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट किसी भी व्यक्ति को जो स्थानीय हो उसे ऐसे अपराधी का वारण्ट जो (i) दोषसिद्धि अपराधी हो, (ii) अपराध घोषित हो गया हो, (iii) अजमानतीय अपराध का दोषी हो या भगोड़ा अपराधी हो ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने का वारण्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी भी व्यक्ति को दे सकता है।
2.जिस व्यक्ति को न्यायालय के मजिस्ट्रेट द्वारा वारण्ट दिया जाएगा वह मजिस्ट्रेट को लिखित में देगा कि वारण्ट उसने लिया है एवं अपनी जबाबदारी से उसका निष्पादन करेगा।
3. अगर किसी भी व्यक्ति द्वारा (जिसे वारण्ट दिया गया था) अपराधी को गिरफ्तार कर लिया जाता है तब वह व्यक्ति वारण्ट सहित उस अपराधी को पुलिस के हवाले करेगा। सुपुर्दगी लेने वाले पुलिस अधिकारी का कर्तव्य होगा कि उसकी जमानत धारा- 71 (जमानत देने की शक्ति पुलिस द्वारा) नहीं दी है तब उस अपराधी को तुरंत मजिस्ट्रेट के पास भेज देगा।
(उपर्युक्त परिस्थिति में मजिस्ट्रेट को अधिकार होता है वह किसी भी व्यक्ति को अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए वारण्ट दे सकता है क्योंकि अपराधी कभी भी कही भी भाग सकता है इस लिए तुरंत वारण्ट निष्पादन करवाना एवं गिरफ्तार करवाना मजिस्ट्रेट का कर्तव्य है।) :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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