एक छोटी सी सच्ची कहानी जो आपको यह बताएगी कि कोई भी प्रतियोगी परीक्षा किसी भी परीक्षार्थी की क्षमता का आकलन नहीं कर सकती। परीक्षा छोटी हो या बड़ी उस में भाग लेना चाहिए, क्योंकि हर प्रतियोगी परीक्षा आपकी क्षमता को बढ़ाती है।
यह कहानी उत्तर प्रदेश राज्य के गोंडा जिले की है। अयोध्या की रहने वाली सबिस्ता परवीन ने प्राइमरी स्कूल टीचर के लिए परीक्षा दी थी और उत्तीर्ण होने पर पलिया चौरठा में शनिवार को कार्यभार ग्रहण किया। इसी प्रकार शिखा मिश्रा ने भी प्राथमिक शिक्षक के लिए परीक्षा दी थी और तरबगंज के प्राइमरी स्कूल खूदेपुर में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यभार ग्रहण किया। रविवार को छुट्टी थी और सोमवार को खंड शिक्षा अधिकारी पद के लिए हुई परीक्षाओं के परिणाम आए। दोनों महिलाएं जो शनिवार को प्राइमरी की टीचर थी, सोमवार को खंड शिक्षा अधिकारी बन गई। दोनों ने एग्जाम क्वालीफाई कर लिए थे।
जब हम किसी छोटी प्रतियोगी परीक्षा के लिये तैयारी करते हैं तो बड़ी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी धीरे-धीरे होती जाती है। प्रत्येक परीक्षा देने से हमारी आंतरिक क्षमता (Inner capability) का विकास होता जाता है और ये आंतरिक क्षमता, क्रमचय (Commutative property) की तरह हमारे मस्तिष्क (Brain) में संचित रहती है और जरूरत पड़ने पर scan मशीन की तरह काम करता है। बाहर आकर हमारी मदद करता है।
MOTIVATION OF THE STORY
ज्यादातर लोग जब किसी छोटे पद के लिए परीक्षा देते हैं तो फिर वह बड़े पद के लिए आयोजित होने वाली परीक्षा में शामिल नहीं होते। वह अपने आपको एक छोटा प्रतियोगी मान लेते हैं। शिखा और सबिस्ता की कहानी यह प्रमाणित करती है कि परीक्षा छोटी हो या बड़ी, देते रहना चाहिए। प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रतियोगी की क्षमताओं का आकलन नहीं होता बल्कि प्रतियोगी परीक्षा में शामिल होने से क्षमताओं का विकास होता है।