इस अपराध से संबंधित दो धारा आपको बताई थी धारा 154 एवं धारा 155। एवं आज की धारा 156 ये तीनों धारा एक दूसरी धारा के सामानरूपी होती है, सरल भाषा में अगर हम देखे तो धारा- 154 वहाँ लागू होती है जहाँ भूमि स्वामी जानबूझकर कर अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता है किसी जमाव या बल्वे को हटाने के लिए। धारा - 155 वहाँ लागू होती हैं कोई विधि विरुद्ध जमाव या बल्वा किसी भूमि स्वामी के फायदे के लिए हो रहा है तब और धारा 156 उन एजेंटों पर लागू होती है जो भूमि स्वामी के इशारे पर विधि विरुद्ध जमाव या बल्वे को अंजाम दे रहे हैं। यह तीनों धारा एक ही अपराध की श्रेणी में आती है, सामान्य तौर पर आम व्यक्ति को इनको समझना बहुत मुश्किल होता है।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 156 की परिभाषा:-
अगर कोई भूमि या परिसर के स्वामी के अभिकर्ता (एजेंट), प्रबंधक (संचालक) की निगरानी में कोई विधि विरुद्ध जमाव या बल्वा हो रहा है और वह ऐसे बल्वे या जमाव को रोकने में असफल होता है या जानबूझकर कर रोकने की कोशिश भी नहीं करता है तब वह अभिकर्ता या संचालक धारा 156 के अंतर्गत दोषी होगा।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 156 के अंतर्गत दण्ड़ का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं होते हैं,यह असंज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई का अधिकार किसी भी मजिस्ट्रेट के पास होता है। सजा:- इस अपराध के लिए मजिस्ट्रेट के विवेक अनुसार किसी भी जुर्माने से दाण्डित किया जा सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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