कुछ विद्वान भ्रम अथवा अज्ञानता के कारण सोमरस को देवताओं की शराब कहते हैं। मजेदार बात यह है कि कोई एक व्यक्ति किसी तथ्य का दावा करता है और उसके फॉलोअर्स, दावे पर विश्वास करते हैं। ना तो तथ्य का वेरिफिकेशन किया जाता है और ना ही कोई प्रति प्रश्न। जो लोग सोमरस को देवताओं की शराब कहते हैं यदि उनसे सोमरस बनाने की विधि पूछ ली जाए तो इसके बाद कोई प्रश्न ही उपस्थित नहीं होगा। आइए हम बताते हैं देवताओं के सोमरस में किसका रस होता था।
क्या शराब को पहले सोमरस कहते थे
यह एक बेतुका तर्क है जो प्रचलन में आ गया है। संस्कृत में शराब के लिए मद्यपान शब्द का उपयोग किया गया है। जिसमें मद का अर्थ है अहंकार या नशा। प्राचीन इतिहास की किताबों में शराब के लिए "मदिरा' शब्द का उपयोग भी किया गया है। मदिरालय और मदिरापान इसी से उत्पन्न हुए हैं। लेकिन सोमरस शब्द का उपयोग कभी भी अहंकार या नशे के लिए नहीं किया गया। बल्कि सोमपान में सोम से तात्पर्य है शीतलता प्रदान करने वाला अमृत।
सोमवल्ली: चिरायु और बलवान बनाने वाली औषधि
सोमवल्ली को औषधियों की रानी भी कहते है। प्राचीन ग्रंथों, वेदों में सोमवल्ली के महत्व एवं उपयोगिता का व्यापक उल्लेख मिलता है। अनादिकाल से देवी देवताओं एवं मुनियों को चिरायु बनाने और उन्हें बल प्रदान करने वाला पौधा है सोमवल्ली। इसे महासोम, अंसुमान, रजत्प्रभा, कनियान, कनकप्रभा, प्रतापवान, स्वयंप्रभ, स्वेतान, चन्द्रमा, गायत्र, पवत, जागत, साकर आदि नामो से जानते हैं। इसका वानस्पतिक नाम Sarcostemma acidum है। इसकी कई तरह की प्रजातियाँ होती हैं।
सोमवल्ली की लताओं से निकली रस को सोमरस कहते हैं
इस पौधे की खासियत है कि इसमें पत्ते नहीं होते। यह पौधा सिर्फ डंठल के आकार में लताओं के समान है। हरे रंग के डंठल वाले इस पौधे को सोमवल्ली लता भी कहा जाता है। सोम की लताओं से निकले रस को सोमरस कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि यह न तो भांग है और न ही किसी प्रकार की नशे की पत्तियाँ।
सोमवल्ली के पौधे अथवा सोम लताएँ कहां पाई जाती है
सोम लताएँ पर्वत श्रृंखलाओं में पाई जातीं हैं। राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के महेंद्र गिरि, विंध्यांचल, मलय आदि पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी लताओं के पाये जाने का जिक्र है। कुछ विद्वान मानते हैं कि अफगानिस्तान की पहाड़ियों पर ही सोम का पौधा पाया जाता है। यह गहरे बादामी रंग का पौधा है।
प्राकृतिक स्किन ट्रांसप्लांट करने वाली आयुर्वेदिक जड़ी बूटी (Body rejuvenation)
समस्त जड़ी बूटियों में सोमवल्ली जिसे संजीवनी बूटी के रूप में जानते है, एक मात्र इतनी महत्त्वपूर्ण है जिससे आठो प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त किये जा सकते हैं। अगर कोई भी जहरीला जानवर काट ले तो इस जड़ी का एक तोला चूर्ण शहद में मिलाकर लेने से कैसा भी जहर उतर जाता है। दूसरा प्रयोग बताते हुए कहा कि इस जड़ी का एक तोला चूर्ण शहद के साथ मिलाकर नित्य 30 दिनों तक सेवन करे तो किसी भी व्यक्ति का कायाकल्प हो जाता है। मांस पेशीय सुदृढ़ होकर शरीर की पुरानी खराब हो चुकी स्किन उतर जाती है और उसके स्थान पर नयी त्वचा निकल आती है।
सोमवल्ली: चश्मा उतर जाता है, आंखों की आयुर्वेदिक दवाई
सोमवल्ली के सेवन से कमजोर नेत्र ज्योति भी बढ़ जाती है और तो और कम सुनाई देने की समस्या ख़त्म होकर कानो से पूरा सुनाई देने लगता है और व्यक्ति हर प्रकार से नवीनता को प्राप्त कर लेता है।
सोम लताओं के बारे में नागार्जुन के शिष्य समश्रुवा का अनुसंधान एवं दवा
नागार्जुन के शिष्य समश्रुवा ने तो अपना पूरा जीवन ही इस संजीवनी के नए नए प्रयोगो में खपा दिया। जीवन के अंत समय में उसने कहा "आकाश के तारो को गिना जा सकता है मगर इस जड़ी के प्रभाव और महत्त्व को नहीं गिना जा सकता।" उसने बताया "इस प्रयोग के माध्यम से जमीन से ऊपर हवा में उठा जा सकता है। व्यक्ति वायु वेग से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकता है।" उसने आगे कहा कि "मुझे कुछ और समय मिलता तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि इसके प्रभाव से व्यक्ति अजर अमर हो सकता है क्योकि मृत्यु इससे नियंत्रण में रहती है। अतः आयुर्वेद के लिए यह औषधि वरदान से कम नहीं है।
मध्य प्रदेश में पाई जाती है दुर्लभ आयुर्वेदिक जड़ी बूटी सोमवल्ली
रीवा के क्योटी, चचाई की घाटियों में पायी जाती है विश्व की दुर्लभतम औषधि सोमबल्ली, पावन घिनौची धाम "पियावन" में भी है मिलने की संभावना" कहा जाता है कि यह दुर्लभतम औषधि रीवा के क्योटी एवं चचाई जलप्रपात की घाटियों में एवं कुण्ड के आस पास बहुतायत मात्रा में पाई जाती है।
रीवा के क्योटी में कितनी चमत्कारी जड़ी बूटियां है
रीवा के क्योटी में सोमबल्ली, मोरशिखा एवं पथरचटा जैसी दुर्लभतम औषधियाँ प्रचुर मात्रा में पायी जाती हैं। मध्यप्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड, भोपाल ने उपरोक्त औषधियों के बिना अनुमति व्यापारिक उपयोग हेतु संग्रहण प्रतिबंधित किया हुआ है।