सिंघाड़ा में कांटा क्यों होता है, जबकि सिंघाड़े तो मीठे और स्वास्थ्यवर्धक होते हैं - GK IN HINDI

Bhopal Samachar
सिंघाड़े का फल काफी उपयोगी होता है लेकिन उसमें कांटे भी होते हैं। दरअसल, सिंघाड़े की खेती तालाब में पानी के अंदर की जाती है। इसके लिए कम से कम 2 फुट से ज्यादा गहरा पानी होना जरूरी है। तालाब के पानी में कई तरह के जीव जंतु एवं बाधाएं होती है। यदि सिंघाड़े के फल में कांटा नहीं होगा तो संभव है कि जलीय जीव जंतु फलाहार कर जाएं। फिर आपको केवल सिंघाड़े के पत्ते मिलेंगे। सिंघाड़े के फल को सुरक्षित रखने के लिए प्रकृति ने उसमें कांटे पैदा की है। साइंस की किताब में लिखा है कि सिंघाड़े में पाए जाने वाले कांटे (spines) सिंघाड़े के फूल में पाए जाने वाले बाह्यदलपुंज (sepals) का मॉडिफाइड रूप है, जो कि सिंघाड़े की जलीय जीवो से सुरक्षा करते हैं।

सिंघाड़ा के उपयोग एवं मुख्य तत्व 

सिंघाड़े का उपयोग दोनों प्रकार से किया जाता है। उसके कच्चे ताजे फल खाए जाते हैं और पके हुए फलों को सुखाकर उन्हें पीस लिया जाता है। सिंघाड़े के आटे से बने हुए व्यंजनों का उपयोग भारत में ज्यादातर धार्मिक उपवास के समय किया जाता है। सिंघाड़े में 4.7% प्रोटीन, 23.3% शर्करा होते हैं। इसके अलावा इसमें कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, पोटेशियम, तांबा, मैगनीज, जिंक एवं विटामिन सी भी सूक्ष्म मात्रा में उपलब्ध होते हैं। 

1 दिन में कितने सिंघाड़े खा सकते हैं 

जैसा कि अपन सबसे पहले डिस्कस कर चुके हैं कि सिंघाड़े में 4.7% प्रोटीन, 23.3% शर्करा होती है इसलिए हम अधिक मात्रा में सिंघाड़े का सेवन नहीं कर सकते। नियमित रूप से 23.3% शर्करा किसी भी सामान्य व्यक्ति को डायबिटीज का मरीज बना सकती है, लेकिन कभी-कभी यदि आप किसी तालाब के किनारे घूमने गए हैं तो जब तक मन करे तब तक से सिंघाड़े खा सकते हैं। बस आपको डायबिटीज नहीं होनी चाहिए। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article 

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