जबलपुर। मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच के माननीय न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और माननीय न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की अध्यक्षता वाली पीठ ने सचिव, वित्त विभाग म.प्र एवं सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया एवं अन्य को नोटिस जारी किया है। याचिकाकर्ता श्री राजीव सराफ, जो केंद्रीय बैंक से लिए गए ऋण में गारंटर थे, ने माननीय उच्च न्यायालय से अवैध वसूली की शिकायत की और उससे ऋण के लिए 9 कड़ोड़ की संपत्ति की नीलामी 80 लाख रुपये में कर दी गयी।
दस्तावेजों की जाली के माध्यम से निजी उत्तरदाताओं ने श्री राजीव सराफ की संपत्ति पर ऋण लिया था, जिसे अधिकारियों द्वारा NPA घोषित किया गया था। श्री राजीव सराफ ने ऋण वसूली अधिकरण, जबलपुर में एक मामला दायर किया, जहां बैंक ने इस तथ्य को दबा दिया कि वे श्री राजीव सराफ की संपत्ति की नीलामी कर रहे हैं, लेकिन उनकी पीठ के पीछे काम करते हुए उनकी संपत्ति को अवैध रूप से नीलाम करने के लिए कार्यरत रहे, मनमाने तरीके से 80 लाख रूपये के लिए 9 करोड़ की संपत्ति बेच दी और नीलामी से प्राप्त रकम में से समायोजन करने के बाद शेष बची राशि भी नहीं दी और ऋण वसूली न्यायाधिकरण, जबलपुर के समक्ष यह कहा की हम सम्पति की नीलामी नहीं कर रहे है।
याचिकाकर्ता की ओर से उनके अधिवक्ता श्री धीरज कुमार तिवारी ने तर्क दिए कि श्री राजीव सराफ को सुनवाई का अवसर दिए बिना बैंक ने गैर कानूनी रूप से SARFAESI अधिनियम के प्रावधानों का गलत इस्तेमाल कर अनैतिक तरीके के तहत काम किया और केवल पैसों के लालच में संपत्ति की नीलामी की। श्री धीरज कुमार तिवारी ने दलील दी कि सरकार और तहसीलदार ने गैर कानूनी तरीके से केवल और सिर्फ केवल बैंक का पक्ष लेने का काम किया है एक आम आदमी को जानबूच कर फंसा कर घर से बेघर कर दिया गया और इसलिए SARFAESI अधिनियम की धाराओं के तहत अब सरकार उन्हें संपत्ति वापस दिलवाए तथा मानसिक प्रताड़ना हेतु संपत्ति का दोगुना मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं जो याचिकाकर्ता को भुगतन करना पड़ा है और याचिकाकर्ता को संपत्ति लौटाएं।
माननीय उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है ताकि यह पता चल सके कि कर्ज वसूली न्यायाधिकरण, जबलपुर ने याचिकाकर्ता के मामले को अनसुना क्यों किया तथा याचिकाकर्ता को उचित कानूनी न्याय देने के बजाय आनन-फानन में मामला गैर कानूनी तरीके से बैंक के पक्ष में क्यों किया गया। ऋण वसूली न्यायाधिकरण, जबलपुर न्याय प्रदान करने के बजाय बैंकों का पक्ष निर्णय लेने का कार्य कर रहा है। माननीय उच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश के वित्त विभाग के सचिव, तथा सरकार को 4 सप्ताह का समय दिया है तथा अपना जवाब दाखिल करने के लिए आदेश दिया है।