धीरज जॉनसन। मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग में वर्षो बाद हुई सहायक प्राध्यापक परीक्षा 2017 कई मामलों में नायाब रही और अब भी इसकी प्रक्रिया अंतहीन मालूम पड़ती है। यह अपने आप में एक शोध का केंद्र बनती जा रही है क्योंकि इसकी सही उपकल्पना अब तक सामने नहीं आ पाई है।
सर्वप्रथम यहां इस बात का जिक्र करना आवश्यक है कि 2018 जून-जुलाई में संपन्न हुई उक्त परीक्षा में बहुत ही कुशलता से सफलता के रास्ते बनाये गए जिनमें साक्षात्कार समाप्त होना, सिर्फ विषय आधारित वस्तुनिष्ठ परीक्षा आयोजित किया जाना, परीक्षा के पहले दस्तावेजों का सत्यापन न होना, न्यायालय के अधीन होने पर भी भर्ती करना, एक्सल शीट पर संशय और बार-बार संशोधन कर आगे की कठिनाइयों को समाप्त करना रहा है।
परीक्षा के पहले ही तर्क दिया जाने लगा था कि साक्षात्कार इसलिए समाप्त किया जायगा क्योकिं इस प्रक्रिया में समय बहुत लगेगा, जबकि इसकी नियुक्तियां 2019 दिसम्बर से प्रारम्भ हुई व काफी लंबे समय तक जारी रही और उम्मीदवारों को सर्टिफिकेट ठीक करने के लिये पूरी छूट दी गई।
जिन अभ्यर्थियों ने अतिथि विद्वान व्यवस्था का लाभ लेने के लिए स्नातकोत्तर डिग्री के सीजीपीए ग्रेड पॉइंट अधिक दर्ज कर इस परीक्षा में 20 अंक अधिभार का लाभ लिया उन्होंने बड़ी चालाकी से यहां अपने स्नातकोत्तर डिग्री के प्रतिशत कम दर्ज कर दिये। आश्चर्य यह है कि भौतिक सत्यापन में इस पर गौर नहीं किया गया।
मामला यहाँ तक ही सीमित नहीं रहा उम्मीदवारों के अन्य दस्तावेजों का भी सूक्ष्म निरीक्षण नहीं किया गया बल्कि नजरअंदाज ही किया गया जिससे ऐसे लोग उच्च शिक्षा में आ गए जिनके सर्टिफिकेट ही शंका में थे।
बहरहाल इस परीक्षा का मामला अब भी कोर्ट में है। हाल ही में उच्च शिक्षा विभाग ने 14 उम्मीदवारों की अनुपूरक सूची जारी कर दी है। देखना यह है कि विभाग द्वारा की गई इस भर्ती से आनेवाली पीढ़ी को कितना लाभ प्राप्त होगा जो कि सिर्फ वस्तुनिष्ठ आधारित ऑनलाइन परीक्षा, गोले काले कर पास की गई और गुणवत्ता की दुहाई दी जा रही है।