भोपाल। मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह सरकार ने किसानों को थोड़ी राहत देते हुए डिसीजन लिया है कि उपार्जन हेतु रजिस्ट्रेशन के लिए आधार नंबर वेरीफिकेशन की जरूरत नहीं होगी। रजिस्ट्रेशन के बाद पटवारी स्तर पर वेरिफिकेशन करवा कर किसान अपनी फसल सरकारी केंद्रों पर बेच सकते हैं।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के रिकॉर्ड से वेरीफिकेशन के कारण किसान परेशान थे
अभी तक किसानों द्वारा पंजीयन के समय दिए गए आधार नंबर को प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना में दर्ज रिकाॅर्ड से मिलान किया जा रहा था। जिसके चलते कई जिलों में पंजीयन में दिक्कतें आ रही थी। यही वजह है कि अभी तक केवल 2 लाख किसान रबी की फसल के उपार्जन के लिए पंजीयन करा पाए हैं। जबकि सरकार ने इसके लिए अंतिम तारीख 20 फरवरी तय की गई है।
खाद्य विभाग के प्रमुख सचिव ने कहा: पिछले साल के जैसे आधार नंबर दे सकते हैं
खाद्य विभाग के प्रमुख सचिव फैज अहमद किदवई ने सभी कलेक्टरों को इस संबंध में निर्देश जारी किए हैं। जिसमें कहा गया है कि पंजीयन के समय किसानों को पिछले साल की तरह ही आधार नंबर देने की व्यवस्था लागू रहेगी। पंजीयन के बाद ही राजस्व विभाग वेब सर्विस के माध्यम से डाटा बेस से मिलान करेगा। यदि पुराने और नए आधर नंबर में अंतर पाया जाता है तो प्रकरण सत्यापन के लिए जिलों को भेजा जाएगा। इसके बाद किसान को खरीदी केंद्रों में फसल बेचने की अनुमति रहेगी।
आधार नंबर से उपार्जन पर कोई असर नहीं पड़ेगा: प्रमुख सचिव
निर्देश में यह भी कहा गया है कि जिन खसरों में आधार नंबर दर्ज नहीं हैं, उनमें पटवारी 'सारा पोर्टल' के जरिए दर्ज करेंगे। निर्देश में स्पष्ट किया गया है कि जिन किसानों के आधार नंबर पूर्व में दर्ज नहीं हैं, फिर भी पंजीयन होगा और इसका उपार्जन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। किसानों के पंजीयन में दोनों (खेती की जमीन को बटाई पर लेने और देने वाले किसान) को आधार नंबर देने की व्यवस्था की गई है।
मध्यप्रदेश में किसानों को क्या समस्याएं आ रही हैं
कुछ प्रकरणों में किसान द्वारा पंजीयन के समय दिए गए आधार नंबर तथा खसरा में दर्ज आधार नंबर में भिन्नता होने के कारण पंजीयन नहीं किया जा रहा था।
जिन किसानों के खसरों में आधार नंंबर पूर्व से दर्ज नहीं था, उनका पंजीयन भी नहीं किया जा रहा था।
चूंकि इस योजना के तहत खसरों में आधार नंबर दर्ज करने की कार्यवाही वर्ष 2019 में की गई थी। इसके बाद जमीन विक्रय, बंटवारा तथा अन्य कारणों से जमीन के स्वामित्व में बदलाव होने पर किसानों का पंजीयन नहीं हो पा रहा था।