धीरज जॉनसन (8435502322)। उच्च शिक्षा विभाग में प्रदेश के सरकारी महाविद्यालयों में सहायक प्राध्यापकों की भर्ती के लिये 2017 में एक विज्ञापन राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा जारी किया गया और देर सबेर नियुक्तियां भी कर दी गई जबकि इसका मामला अभी भी न्यायालय के अध्यधीन है। उच्च शिक्षा में वर्षो बाद हुई यह भर्ती चर्चाओं और विवादों के घेरे में भी लगातार रही, और अब पुनः चार साल बाद पदों में संशोधन के कारण चर्चा में है।
ज्ञातव्य हो कि 2014 और 2016 में भी इस परीक्षा के लिये विज्ञापन जारी हुआ था पर वह किन्ही कारणवश निरस्त हुआ, 2017 में पुनः परीक्षा का विज्ञापन जारी किया गया पर इसमें आवेदन से लेकर नियुक्ति तक और उसके बाद भी राज्य लोक सेवा आयोग और उच्च शिक्षा विभाग ने 32 से ज्यादा संशोधन किये गए। जिनमें, आरक्षण, रोस्टर, फार्म भरने के बाद भी दस्तावेज अपलोड करने के लिये लिंक ओपन किया जाना, 605 आवेदकों को सर्टिफिकेट दुरस्त करने के लिये लगभग एक साल तक का मौका देना और लगभग 89 अभ्यर्थियों की स्नातकोत्तर की उपाधि विज्ञापन के अनुसार है या नहीं,यह सबसे ज्यादा चर्चा में रही।
इस भर्ती से जहां हजारों योग्य और अनुभवी अतिथि विद्वानों पर प्रभाव पड़ा और आंदोलन भी हुए जिसके बाद अतिथियों को पुनः आमंत्रित किया गया पर अभी भी सैकड़ों अतिथि विद्वान इस व्यवस्था से बाहर है, तो वहीं बिना साक्षात्कार के नियुक्ति होने से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर भी सवालात हुए।
यह परीक्षा प्रदेश की दोनों प्रमुख पार्टियों के बीच भी खासी चर्चा का विषय रही और आश्वासन व जांच की बात भी सामने आई, पर अब इस भर्ती को हुए एक साल से ज्यादा हो चुके है पर इससे संबंधित कोर्ट का निर्णय आना अभी शेष है।
अब यह फिर से प्रकाश में आ गई है कारण
राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा इस परीक्षा के विज्ञापन की पुनरीक्षित सूची वेबसाइट पर प्रकाशित करना, जिसके अनुसार उच्च शिक्षा विभाग के पत्र दिनांक 5 फरवरी 2021, उच्च न्यायालय द्वारा दिव्यांगजन आरक्षण के संदर्भ में प्रस्तुत याचिका में परित निर्णय 29 अप्रैल 2020 के अनुपालन में सहायक प्राध्यापक संवर्ग में दिव्यांगजनो के लिये आरक्षित कोटे के अंतर्गत विज्ञापित पदों को कार्ड स्ट्रेंथ में उपलब्ध रिक्तियों तथा पूर्व विज्ञापन के कैरी फॉरवर्ड पदों को शामिल करते हुए पुनरीक्षित किया गया तदनुसार रिक्तियां संशोधित की गई।
चौकाने वाली बात तो यह है कि जब इस परीक्षा का विज्ञापन जारी हुआ तो बैकलॉग पद, पदोन्नति सेवा निवृति से रिक्त पद और नए सृजित पद को अलग अलग सूची बना कर जारी किया पर बीच में लगभग तीन चार बार पदों का संयोजन किया जाता रहा, बाद में सभी पदों को सम्मिलित कर एक ही सूची जारी कर दी गई जो सर्वसाधारण के लिए और भी विस्मयकारी रही, और अब वे 43 दिव्यांगजन बाहर है जिन्होंने परीक्षा पास की और भोपाल में अपने दस्तावेजों का वेरिफिकेशन भी करवाया,न्यायालय से इन्हें सेवा में रखने का निर्णय भी हुआ पर वे अब भी बाहर ही है जो अवमानना का प्रकरण भी दायर कर सकते है।