जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने लोक सेवा आयोग एवं मध्य प्रदेश शासन को आरक्षण विवाद पर अपना जवाब पेश करने के लिए अंतिम अवसर दिया है। मामला एमपीपीएससी प्रारंभिक परीक्षा 2019 में लागू किए गए आरक्षण पर विवाद का है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि एमपी पब्लिक सर्विस कमीशन के मैनेजमेंट नेआरक्षण अधिनियम-1994 की धारा-4 की उपधारा-4 की गलत तरीके से व्याख्या की है। मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने याचिकाओं की अगली सुनवाई 22 फरवरी को निर्धारित की है।
MPPSC ने 113% आरक्षण लागू कर दिया, इसी को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है
सामाजिक संगठन अपाक्स सहित छह अन्य याचिकाओं में कहा गया है कि पीएससी परीक्षा के प्रारंभिक परिणामों में गलत तरीके से आरक्षण के प्रावधान लागू किए गए हैं। याचिका में कहा गया कि अनारक्षित पदों पर केवल प्रतिभावान छात्रों का चयन होता है, चाहे वह किसी भी वर्ग का हो। याचिका में कहा गया है कि पीएससी परीक्षा के परिणाम में अनारक्षित वर्ग के 40% पद सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं। इसके साथ ही 73% आरक्षण ओबीसी, एससी, एसटी और EWS के लिए कर दिया गया है। इससे 113 प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया गया है।
आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4 (4) की गलत व्याख्या की
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संतोष पॉल, रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक शाह ने दलील दी कि पीएससी द्वारा आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4 (4) की भी गलत व्याख्या की जा रही है। पीएससी ने राज्य सेवा परीक्षा नियम 2015 में किए गए संशोधन को भी भूतलक्षी प्रभाव से लागू कर दिया है। पिछली सुनवाई के दौरान युगलपीठ ने पीएससी की परीक्षा के परिणामों को याचिका के निर्णय के अधीन करने का आदेश दिया था। राज्य शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता आरके वर्मा और पीएससी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत सिंह ने गुरुवार को जवाब पेश करने के लिए समय दिए जाने का अनुरोध किया। युगलपीठ ने राज्य सरकार व पीएससी को जवाब पेश करने के लिए अंतिम अवसर देते हुए अगली सुनवाई 22 फरवरी को नियत की है।