Settlement not accepted in rape case due to marriage: High court
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के बाद हाई कोर्ट ने भी एक मामले में फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि यदि आरोपी, पीड़ित महिला से शादी कर लेता है तो इस आधार पर बलात्कार के मामले में राजीनामा स्वीकार नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि ऐसा करने से समाज पर गलत संदेश जाएगा।
आरोपी ने शिवा बनकर संबंध बनाएं मैरिज सर्टिफिकेट पर अख्तर लिखा था
न्यायाधीश सुब्रमण्यम प्रसाद ने अपने फैसले में कहा कि आरोपी ने पीड़िता से शिवा बन कर दोस्ती की और विवाह का झांसा देकर पांच वर्ष तक उससे शारीरिक संबंध बनाए। इसके बाद उसने आर्य समाज मंदिर के नाम से फर्जी तरीके से विवाह प्रमाणपत्र बनाया व उसमें अपना नाम अख्तर लिखवाया।
आरोपी के पास शिवा और अख्तर दोनों नाम के आधार कार्ड
अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि उसके पास शिवा और अख्तर के नाम से दो आधार कार्ड है जिनमें से एक फर्जी है। इसके अलावा पीड़िता ने अदालत के समक्ष धारा 164 के बयानों में अपनी शिकायत का समर्थन किया है।
बलात्कार के लिए धोखाधड़ी, निजी मामला नहीं: हाई कोर्ट
अदालत ने कहा कि यह दिवानी मामला या पति-पत्नी के बीच विवाद का मामला नहीं है। बलात्कार और जालसाजी जैसे गंभीर अपराधों का असर समाज पर पड़ता है। इन अपराधों को केवल निजी या दीवानी विवाद नहीं माना जा सकता बल्कि इसका प्रभाव समाज पर पड़ेगा।
समाज की भलाई को खतरे में डालने वाला अपराधी दोषमुक्त नहीं किया जा सकता: हाई कोर्ट
अदालत ने कहा जो अपराध समाज की भलाई को गंभीर रूप से खतरे में डालते हैं ऐसे अपराधी को इस आधार पर छोड़ना सुरक्षित नहीं है कि उसने और पीड़ित ने इस विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाया है।
पीड़िता ने पहले FIR दर्ज कराई फिर उसे रद्द करने की याचिका लगा दी
यह मामला प्रेम नगर थाना क्षेत्र क है। पुलिस ने पीड़िता की शिकायत पर आरोपी अख्तर के खिलाफ धारा 419, 467, 471, 474, 376, 354 व 506 के तहत मामला दर्ज किया था। पीड़िता ने आरोप लगाया कि उसने विवाह के नाम पर शारीरिक संबंध बनाए फिर फर्जी प्रमाणपत्र के जरिए विवाह किया दर्शाया और उसके बाद पैसे मांगने लगा।पीड़िता व आरोपी ने याचिका दायर कर तर्क रखा कि अब दोनों में समझोता हो गया है और वे पति-पत्नी के रूप में रह गए है। ऐसे में दर्ज प्राथमिकी रद्द की जाए।