“वर्धा मंथन” से मिली कुछ ‘कार्य’, ‘व्यक्ति’ और ‘सरोकार’ को दिशा - Pratidin

'व्यक्ति’ से बड़ा ‘दल’ और दल से बड़ा ‘देश’ वैसे तो यह परिभाषा सबसे पहले गोविन्दाचार्य जी से सुनी है | गोविन्दाचार्य जी, यानि श्री के एन गोविन्दाचार्य इसका हमेशा उल्लेख करते है | इसी भावना से अपने दल, विचार, और अन्यान्य कोटरों से बाहर निकल कर ,कई कारीगर,चिंतक, लेखक, विचारक “वर्धा मंथन” में ६-७ फरवरी को जुटे | एक शब्द में इन्हें सामाजिक कार्यकर्त्ता कहकर ‘मीडिया’ ने अपना काम चला लिया | वस्तुत: ये सब उस पाथेय के पथिक हैं, जो गांधीजी, विनोबा जी, दीनदयाल जी, धर्मपाल जी,नाना जी देशमुख,जैसी किसी एक विभूति से प्रेरित होकर उनके बनाये और बताये रास्ते पर चल पड़े हैं | वर्धा मंथन ने इन सारी विभूतियों को स्मरण किया | इन्ही के साथ एक व्यक्तित्व सबसे ज्यादा स्मरण किये गये वे आदिलाबाद के रवीन्द्र शर्मा ‘गुरु जी’ थे |

यूँ तो रवीन्द्र शर्मा गुरु जी पर स्मृति –जागरण के हरकारे नामक पुस्तक २०१२ में छपी है | कई उलहानों के बाद प्रिय भ्राता रूपेश पांडे के सौजन्य से इसी मंथन में यह पुस्तक जीविका अध्ययन शोध संस्थान के मित्र आशीष गुप्ता के हस्ते प्राप्त हुई |इस पुस्तक में पद्म श्री डॉ महेश शर्मा जी, आदरणीय राम बहादुर राय के अतिरिक्त काई नामचीन लोगों ने गुरु जी के बारे में लिखा है | मैं भी उनसे दिल्ली में एक दिन भर के लिए मिला था , वे किसी विवाह समारोह में आये थे | उनके विचार में उन सारी बातो के समाधान थे, जिन पर हम आज विचार कर रहे हैं | आज देश की सारी समस्याओं की जड में जो एक मूल कारण समझ आता है, वो हम पहले कुछ और है, फिर भारतीय होने का अभिनय करते हैं | हमे देश के जल, जंगल, जमीन जानवर, जन, और जुबान की कोई चिंता नहीं है | हम इनसे मनमाना व्यवहार करते हैं | हमारे विकास की दिशा के मुख्य अंग मनमाने कृत्य और हद अधिक से भ्रष्टाचार से सराबोर है | जब हम वर्धा मंथन में जुटे थे, इसी मनमानी का उदहारण सामने आया |एक बड़े थर्मल पावर प्रोजेक्ट के कारण उत्तराखंड में एक गेल्शियर के धसकने कई लोगों के प्राणपखेरू उड़ गए और कई लोग अब तक लापता है |

हमारे वर्धा मंथन के केंद्र में “ग्राम विकास” में था | ग्राम विकास भारत की धुरी है,महात्मा गाँधी, विनोबा जी दीनदयाल जी सभी यही बात तो कहते थे | वर्धा में जुटे लोगों से ज्यादा आज सरकार में बैठे लोग इन विभूतियों को अपना मार्गदर्शक कहते नहीं थकते हैं, पर करते क्या है ? देश में स्वच्छता अभियान चला यहाँ से वहां तक शौचालय बने | मध्यप्रदेश की एक आई ए एस दीपाली रस्तोगी ने सवाल उठाया कि “शौचालय में पानी कहाँ से आएगा ? उसके बदले दीपाली की आलोचना हुई | आज उन शौचालयों की दशा क्या है ? पानी न होने के कारण वे शौच के अतिरिक्त अन्य काम में आ रहे हैं | शौच अब भी खुले में, जल स्रोत के आसपास यथावत | पूरे कार्यक्रम पर करोड़ों रूपये खर्च हुए है, सरकारी आंकड़े कहते है |

ग्राम विकास के मानदंड महात्मा गाँधी सहित अभी विभूतियों के बताये हुए है , किताबों में लिखे हुए है, पर सारी ग्राम पंचायतों में विकास के सारे काम सरकार जिस एक किताब से करती है वो पी डब्लू डी मैन्युअल है |अंग्रेजो के बनाये इस मैन्युअल में सालों पहले हर काम की दर, उसका वर्गीकरण, मजदूरी ,सब वर्णित है सरकार दरें समय-समय पर बढाती है | फिर भी ठेके इन दरों से काफी कम दरों पर जाते हैं,इसके बाद भी सबको काली कमाई का हिस्सा बखूबी मिलता है |इसी कारण यह किताब चिरंजीवी है |

आज समय की मांग, देश हित सर्वोपरि है |हम सब उसी पर मंथन के लिए जुटे थे सरकार तो आती जाती रहेगी | देश प्रथम है | यही हमें हमारे पूर्वज हमें सिखा गये हैं, अब बारी हमारी खरे उतरने की है | “वर्धा मंथन” से कुछ ‘कार्य’, ‘और ‘सरोकार’ को दिशा मिली है} हम सब व्यक्ति अपन शत प्रतिशत राष्ट्र को दे तो आज जो घटाटोप दिख रहा है फौरन छंट जायेगा |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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