सिमटती कांग्रेस को किसानी और किसान का सहारा मिला - Pratidin

NEWS ROOM
भाजपा माने या न माने किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि ने भाजपा को पंजाब के स्थानीय निकाय चुनाव में करारी हार का मुंह दिखला दिया है। वर्तमान हालत में लगने लगा था कि कांग्रेस की जीत तय है लेकिन विपक्ष को इतनी बुरी और बड़ी नकार मिलेगी, इसका अंदाजा कम ही था। बहरहाल, आगामी विधानसभा चुनावों के ‘लिटमस टैस्ट’ जैसे इस चुनाव में कांग्रेस ने मनोवैज्ञानिक बढ़त तो हासिल कर ही ली है। वैसे इन निकाय चुनावों के चुनाव अभियान के दौरान भाजपा नेताओं और प्रत्याशियों को जिस तरह विरोध का सामना करना पड़ रहा था, उससे साफ था कि पंजाब के निकाय चुनाव में भाजपा के सितारे गर्दिश में रहेंगे। वैसा हुआ भी, जिससे राज्य के विधानसभा चुनाव में भाजपा की वापसी की संभावनाओं पर भी सवाल उठते हैं।

सही मायने में पहले पंजाब और फिर दिल्ली की सीमा पर लंबे समय से जारी किसान आंदोलन को पंजाब के लोगों ने राज्य की अस्मिता से जोड़कर देखा और उसी के अनुरूप जनादेश भी दिया। वहीं भाजपा के साथ ही  आप को भी लोगों ने नकार दिया। शिरोमणि अकाली दल दूसरे नंबर पर जरूर आया लेकिन उसकी उपलब्धि ज्यादा उम्मीद जगाने वाली नहीं है।

कांग्रेस ने किसानों से अर्जित सद्भावना के बूते जीत की शानदार इबारत लिख डाली। पंजाब निकाय चुनावों में कांग्रेस ने आठ नगर निगमों और १०९ नगरपलिका परिषद व १०० नगर पंचायतों में परचम लहराया। गत चौदह फरवरी को हुए स्थानीय निकाय चुनावों में मतदाताओं ने बड़े उत्साह से भाग लिया और करीब 71 फीसदी मतदाताओं ने अपने पसंद के उम्मीदवारों को वोट दिया। बहरहाल, इन चुनाव परिणामों ने राज्य के मतदाताओं के मूड का अहसास करा दिया है। भाजपा को जहां किसान आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार के अड़ियल रवैये का खमियाजा भुगतना पड़ा, वहीं शिरोमणि अकाली दल से हुए अलगाव का भी नुकसान हुआ। वहीं किसानों की नाराजगी झेल रही भाजपा से अलग होने का भी कोई विशेष लाभ अकाली दल को नहीं हो सका जो उसके लिये सबक भी है कि आगामी विधानसभा चुनाव के लिये राज्य में उसे कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।

निस्संदेह, पंजाब के भावी राजनीतिक परिदृश्य की बानगी दिखाने वाले इन चुनावों ने पिछड़ने वाले राजनीतिक दलों के लिये आत्ममंथन का मौका दिया है। यह भी कि जनांदोलनों की अनदेखी राजनीतिक दलों को भी भारी पड़ सकती है। कमोबेश किसान आंदोलन से उपजे परिदृश्य में पंजाब ही नहीं, हरियाणा की राजनीति भी अछूती नहीं रही है, जिसकी झांकी दिसंबर के अंत में तीन नगर निगमों के महापौर की सीटों में से दो व तीन नगरपालिका परिषद अध्यक्ष पद खोकर भाजपा-जजपा गठबंधन ने देखी थी। वैसे आमतौर पर इन चुनावों में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल को फायदा होता है। निश्चित रूप से भाजपा-जजपा गठबंधन ने इन राजनीतिक रुझानों को महसूस किया होगा।

इसमें संदेह नहीं है कि पंजाब में तो भाजपा के लिये आने वाला वक्त बहुत मुश्किलों भरा होने वाला है। निकाय चुनाव के दौरान पार्टी नेताओं को जहां लोगों की तल्खी का सामना करना पड़ा है वहीं दूसरी ओर शिरोमणि अकाली दल तथा आम आदमी पार्टी को ये मंथन करना होगा कि वे पंजाब की प्रगति की योजनाओं से कैसे जुड़कर जनता का विश्वास हासिल कर सकते हैं। जनता से जुड़ने के लिये उन्हें अब अतिरिक्त प्रयासों की जरूरत होगी। यह सुखद ही है कि पंजाब में पहली बार निकाय चुनावों में महिलाओं के लिये पचास फीसदी सीटें आरक्षित की गई थीं। ऐसे में जहां वार्डों में विकास कार्यों के लिये नये व अनुभवी पुरुष प्रतिनिधियों से उन्हें सामंजस्य बनाना है, वहीं उन्हें इस बदलाव को साबित भी करना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि वे अपने विवेक से विकास के लिये रचनात्मक पहल करेंगी। साथ ही उस धारणा को खारिज करेंगी, जिसमें कहा जाता है कि परिवार के पुरुष सदस्य कार्यप्रणाली के निर्धारण में फैसले लेते हैं। 

इन स्थानीय निकायों के इन चुनाव परिणामों ने जहां कांग्रेस पार्टी में उत्साह भर दिया है, वहीं कैप्टन अमरेंद्र सिंह के नेतृत्व को भी मजबूती प्रदान की है जो आगामी विधानसभा चुनाव के लिये पार्टी के लिये सुखद संकेत ही है। 
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!