बच्चे चिंता में है, परीक्षाकाल सामने खड़ा है, चिंता शुरू हो गई है। बहुत से बच्चे तो मनाते हैं कि किसी न किसी तरह परीक्षा काल टल जाएं। इस बार कोरोना के दुष्काल के कारण बच्चों को परीक्षाकाल दुबले और दो आषाढ़ जैसा दिख रहा है | परीक्षाकाल में अक्सर सब इस स्थिति से गुजरते हैं, बहुत कुछ आते हुए भी, उस समय ठीक से याद नहीं आता, जब जवाब लिखना होता है । इस बार तो कक्षायें भी ऑनलाइन रही हैं, कुछ को बहुत कुछ याद है, कुछ के लिए सब सपाट है |
हर पीढ़ी के लोग इससे मिलते जुलते परीक्षा काल से गुजरे हैं, पर ऐसा भय उन्हें कभी नहीं हुआ । तब भी प्रश्नपत्र सामने आने से पहले खूब डर लगता था। दिल की धड़कनें बढ़ जाती थीं। पेपर से पहले रात भर तरह-तरह की चिंता में नींद नहीं आती थी। डर लगा रहता था कि कहीं कुछ पढ़ने से रह न गया हो। तब बड़े समझाते थे कि तुम्हें सब आता है, घबराओ मत। प्रश्नपत्र जब मिलेगा, तब सारा डर खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगा। पूरे आत्मविश्वास से परीक्षा देना। पहले ध्यान से पूरे प्रश्नपत्र को पढ़ना। जो आता हो, उसे सबसे पहले करना। आज हम स्कूल जाती पीढ़ी को यह आश्वासन ओर प्रोत्साहन नहीं दे पा रहे हैं|
वैसे भी इन दिनों भी बच्चों को इस तरह की परेशानियां और चिंताएं बहुत होती हैं। कुछ साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सब को लेकर एक किताब भी लिखी थी- एग्जाम वॉरियर्स। इस साल भी वह परीक्षा से पहले बच्चों से मन की बात करने वाले हैं। परीक्षा के डर से बहुत से बच्चे घर तक से भाग जाते हैं या बीमार पड़ जाते हैं। इसीलिए इन दिनों सीबीएसई और तमाम राज्य सरकारें परीक्षा के दिनों में बच्चों के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी करती हैं। तमाम एफएम चैनल्स में मनोवैज्ञानिक और काउंसलर बच्चों की मदद के लिए मौजूद रहते हैं। इम्तिहान के समय होने वाली चिंता, समय पर कुछ न याद आना, प्रश्नपत्र देखते ही सब कुछ भूल जाने को अंगे्रजी में ‘टेस्ट एंग्जाइटी’ कहते हैं।
एक सर्वे बताता है कि देश में १६ से २० प्रतिशत तक बच्चे तरह-तरह की एंग्जाइटी के शिकार होते हैं। अमेरिका में १० से लेकर ४० प्रतिशत तक बच्चे टेस्ट एंग्जाइटी से पीड़ित पाए गए हैं। परीक्षा में अच्छा कर सकें, इसके लिए थोड़ी-बहुत चिंता या तनाव तो ठीक है, लेकिन इसका जरूरत से ज्यादा बढ़ जाना ठीक नहीं है। बच्चों को तरह-तरह के डर सताते हैं कि कहीं फेल न हो जाएं। नंबर अच्छे नहीं आए, तो माता-पिता, दोस्तों और अड़ोसी-पड़ोसियों का सामना कैसे करेंगे? वैसे भी, इन दिनों माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे के हर विषय में सौ में सौ अंक आएं। वे क्लास में ही नहीं, पूरे बोर्ड एग्जाम में टॉप करें। इस तरह की उम्मीद बच्चों का तनाव बढ़ाती हैं। न केवल तनाव, बल्कि उल्टी, पेट दर्द, जरूरत से ज्यादा पसीना आने लगता है। इससे बच्चों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है।
एनसीआरबी की २०१४ रिपोर्ट में बताया गया था कि बोर्ड के इम्तिहानों की चिंता के कारण आत्महत्या करने वाले बच्चों की संख्या एक दक्षिणी राज्य में सबसे ज्यादा है। वहां बोर्ड के इम्तिहानों से पहले सौ बच्चों पर एक अध्ययन किया गया था। इनमें ५० लड़के और ५० लड़कियां थीं। इस अध्ययन में पता चला कि आठ प्रतिशत बच्चे ऐसे थे, जिनमें इम्तिहान की चिंता या टेस्ट एंग्जाइटी जरूरत से ज्यादा थी। इसे सीवियर टेस्ट एंग्जाइटी कहते हैं। ३८ प्रतिशत में कुछ कम और चार प्रतिशत में मामूली थी। लड़कियों के मुकाबले लड़कों में टेस्ट एंग्जाइटी ज्यादा थी। इसके अलावा, संयुक्त परिवारों के मुकाबले, एकल परिवारों में रहने वाले बच्चे इससे अधिक ग्रस्त थे। इसका कारण बताया गया कि माता-पिता यदि बच्चों पर ध्यान न भी दे पाएं, तो दादा-दादी का सहारा मिल जाता है और उन्हें इम्तिहान के दिनों में कम तनाव और चिंता होती है। संयुक्त परिवारों में रहने वाले बच्चों में सीवियर टेस्ट एंग्जाइटी पाई ही नहीं गई। इम्तिहान के दिनों में लगभग सभी बच्चों में चिंता के लक्षण देखे गए। दसवीं, बारहवीं के बच्चों में नौवीं, ग्यारहवीं के बच्चों के मुकाबले अधिक टेस्ट एंग्जाइटी पाई गई।
आज सबके सामने सवाल है,बच्चे क्या करें? विशेषज्ञों का कहना है कि इम्तिहान के दिनों में भी बच्चे पूरी नींद लें। पौष्टिक भोजन के साथ-साथ खूब पानी पिएं। हल्का व्यायाम भी करें, जिससे तरोताजा रह सकें। सैंपल पेपर उसी तरह से हल करें, जैसे कि परीक्षा के समय करेंगे, इससे इम्तिहान में आने वाले पेपर का डर खत्म हो जाता है। बार-बार टेस्ट दें। इससे लिखने की आदत तो बनती ही है, समय पर पेपर पूरा करने का अभ्यास भी होता है। पढ़ने का टाइम टेबल भी बनाएं। जो न आता हो, उसे समझने में अध्यापकों और अपने घर के बड़े लोगों की मदद लें। फोकस करना सीखें। ऐसे छोटे-मोटे मनोरंजक प्रोग्राम समय-समय पर देखें, जो तनाव घटाते हैं और हंसाते हैं। यदि जरूरत हो, तो काउंसलर या मनोवैज्ञानिक की मदद लें।
इस तनाव व परीक्षा के दिनों में माता-पिता को बच्चों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि वे बच्चे की परेशानी से बेखबर रहें और बच्चा अगली किसी भारी परेशानी में पड़ जाए। जैसे उनका घर से भागना या आत्महत्या जैसे घातक कदम उठाना। कोरोना जैसी महामारी और ऑनलाइन पढ़ाई के बाद पहली बार परीक्षा काल आया है, इस बार वाकई बच्चों में आत्मविश्वास कम होगा और दबाव ज्यादा। यह प्रश्नपत्र से लेकर कॉपी जांचने और परिणाम तक उदारता बरतने का समय है। हम सबको सोचना जरूरी है, इस दुष्काल में परीक्षा की तैयारी देश का भविष्य कर रहा है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।