दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, अपने देश की सबसे बड़ी जनसंख्या किसान खेत छोड़ आंदोलन में लगा है और आन्दोलन का घटनाक्रम इतनी तेजी से घूम रहा है कि राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी चर्चा हो रही है। संसद में हंगामा हुआ, राज्यसभा से आप पार्टी के तीन सांसदों का निष्कासन हुआ और राहुल गांधी ने कृषि सुधारों के मुद्दे पर सरकार पर तीखे हमले बोले। देश के उच्च न्यायालय ने २६ जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा की जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं को अपनी मांग सरकार के सामने रखने को कहा।
मीडिया ने जन सामान्य का ध्यान हरियाणा के जींद में होने वाली महापंचायत की और खींचा, जिसमें आंदोलन के अगुवा किसान यूनियन प्रवक्ता राकेश टिकैत ने भाग लिया। कंडेला खाप द्वारा आयोजित इस महापंचायत को अन्य खापों ने भी सहयोग दिया। दो दशक पहले भी कंडेला खाप ने बड़े किसान आंदोलन की अगुवाई की थी। दरअसल, राकेश टिकैत की आंसुओं की कसक ने इस आंदोलन को फिर से सींच दिया है।
आंसू प्रकरण के बाद हरियाणा में सबसे पहले प्रतिक्रिया कंडेला गांव में हुई थी। किसानों ने इसके तुरंत बाद जींद-चंडीगढ़ हाईवे जाम कर दिया था। बहरहाल, कंडेला में पंचायत का मंच टूटा और टिकैत समेत कई किसान चपेट में भी आये लेकिन टिकैत ने इसे आंदोलन के लिये शुभ बताया। टिकैत ने सरकार को चेताया कि यह आंदोलन धीमा नहीं होगा। आश्चर्य की बात है अभी तक इस आंदोलन का कोई नेता नहीं है, सारे के सारे किसान ही आंदोलन का नेता है।
एक बात और है सरकार किससे बात करे, जवाब है अभी जिन किसान प्रतिनिधियों से सरकार बात कर रही थी, उन्हीं से बात करे। यह भी कि लड़ाई जमीन बचाने की है और और उम्मीद है किसान तिजोरी में अनाज बंद नहीं होने देंगे। राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि किसान आंदोलन से निपटने की केंद्र की नीति से देश की छवि खराब हुई है, सवाल उनके अपने योगदान क्या रहे हैं ? इसी तरह हॉलीवुड सेलिब्रिटी रिहाना, पर्यावरण योद्धा ग्रेटा थनबर्ग, पूर्व पॉर्न स्टार मिया खलीफा व अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस से भी यही सवाल पूछे जा सकते हैं | इसी को लेकर अब देश घमासान मचा है । अब इस आन्दोलन में वे भी कूद गये हैं जिनका किसान और किसानी से कोई वास्ता नहीं है | जैसे क्रिकेट का “बेट” थामने वाले हाथ “हल वालों “ की बात कर रहे हैं |
अब विदेश मंत्रालय की टिप्पणी भी आई है और बॉलीवुड से भी आक्रामक जवाब आ रहे हैं । विदेश मंत्रालय ने कहा कि सोशल मीडिया पर अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों को तथ्यों को समझकर जिम्मेदारी से व्यवहार करना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय टिप्पणीकारों के विरुद्ध बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत, अजय देवगन, सुनील शेट्टी, करण जौहर व कैलाश खेर की टिप्पणियां सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी रही।
राकेश टिकैत के रो देने के बाद किसान आंदोलन में एक नयी जान आई है। सरकार दबाव में आ गई है। दिल्ली की सीमा पर आंदोलन स्थलों से दिल्ली जाने वाले मार्गों पर जिस तरह किलेबंदी सुरक्षा बलों की तरफ से की जा रही है, उसको लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं कि कंक्रीट के अवरोधक, कंटीले तार तथा कीलें किस मकसद से लगायी जा रही हैं? निस्संदेह २६ जनवरी की ट्रैक्टर रैली के बाद जिस तरह से हिंसा हुई और लाल किले का जो अप्रिय घटनाक्रम घटा, उसने पुलिस को अतिरिक्त सुरक्षा करने को बाध्य किया। लेकिन सवाल उठ रहा है कि ये कवायदें समस्या के समाधान की तरफ तो कदापि नहीं ले जाती। आखिर सरकार ये क्यों नहीं सोच रही है कि सुधार कानूनों की तार्किकता किसानों के गले नहीं उतर रही है। जब जिनके लिये सुधारों का दावा किया जा रहा है, वे ही स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं तो फिर राजहठ का क्या औचित्य है? खेती-किसानी आम किसान के लिये महज कारोबार ही नहीं है, उसके लिये जीवन-मरण का विषय है। जिसके चलते किसान सुधार कानूनों के चलते खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है। सही मायनो में सरकार सुधारों को लेकर किसानों को विश्वास में नहीं ले पा रही है। किसान आंदोलन की हताशा समाज में नकारात्मक प्रवृत्तियों को प्रश्रय दे सकती है|
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।