भोपाल। मप्र अधिकारी कर्मचारी संयुक्त समन्वय कल्याण समिति का कहना है कि मध्यप्रदेश में शुरू होने जा रहे लगभग 9000 सीएम राइज स्कूल निश्चित रूप से अपने आप में अत्याधुनिक होंगे परंतु हर सीएम राइज स्कूल 15 किलोमीटर के दायरे में मौजूद सभी सरकारी स्कूलों को खत्म कर देगा। शिक्षकों के हजारों पद समाप्त हो जायेंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल एक बार फिर गांव से बहुत दूर हो जाएगा। अपराध और एक्सीडेंट के डर से लड़कियों को स्कूल भेजना मुश्किल हो जाएगा।
मप्र अधिकारी कर्मचारी संयुक्त समन्वय कल्याण समिति के प्रांताध्यक्ष उदित सिंह भदौरिया, संयोजक प्रमोद तिवारी एवं प्रांतीय महामंत्री कन्हैयालाल लक्षकार, जगमोहन गुप्ता, हरीश बोयत व यशवंत जोशी ने संयुक्त प्रेस नोट में बताया कि मप्र में सीएम राइज के तहत प्रत्येक ब्लाक में तीन विद्यालय, हर 15 किमी के दायरे में आने वाले विद्यालयों को मर्ज कर "प्री नर्सरी से हायर सेकेंडरी" तक एक सर्वसुविधा युक्त विद्यालय खोला जाना प्रस्तावित है! इसमें व्यवहारिक पहलुओं पर गौर किया जाना नितांत आवश्यक है।
लड़कियों को रोज घर से 15 किलोमीटर कौन भेजेगा
सबके लिए स्थानीय, सुलभ, अनिवार्य व निशुल्क शिक्षा व्यवस्था को झटका तो नहीं लगेगा। इसमें सर्वाधिक नुकसान बालिका शिक्षा को होने वाला है। ग्रामीण इलाकों में गांव से बाहर शिक्षा के लिए लड़कियों को भेजने से आज भी पालकगण परहेज करते है। इस कारण बालिका शिक्षा का ड्रापआउट बढ़ सकता है।
सीएम राइस स्कूल अप डाउन में विद्यार्थियों का एक्सीडेंट हो गया तो
परिवहन से विद्यालय आने-जाने में दुर्घटना की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। किसी के घर का चश्मों चिराग किसी दिन शिक्षा के लिए दुर्घटना का शिकार होता है, तो यह उस परिवार के लिए अपूरणीय क्षति व कलंक से कम न होगा! बेरोजगारों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय है।
मध्यप्रदेश में शिक्षकों के हजारों पद समाप्त हो जाएंगे
एक शाला एक परिसर से शिक्षकों के हजारों पद पहले ही समाप्त हो चुके है। उक्त विद्यालयों के कार्यरूप में परिणित होने से एक बार फिर हजारों शिक्षकों के पद समाप्त हो जाएंगें, वैसे भी 2012 के बाद प्रदेश में शिक्षकों की भर्ती नहीं हो पाई है। प्रतिवर्ष हजारों बेरोजगार प्रशिक्षित बीएड डीएड शिक्षक बनने की आशा में सड़कों पर चप्पलें चटकाते मिल जाएंगे, कई तो अधिकतम आयु सीमा पार कर चुके हैं। हजारों अतिथि शिक्षक के रूप में अपना आर्थिक शोषण इस उम्मीद से करवा रहे है की देर सवेर सरकारी नौकरी लग जाएगी।
गांव गांव में बनाए गए सरकारी स्कूल भवनों का क्या होगा
यह एक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के विपरीत होकर सामाजिक रूप से भयावह परिदृश्य है। साथ ही अरबों की लागत से बने गांव-गांव के शाला भवन व संसाधन अनुपयोगी हो जाएंगे। कुल मिलाकर सीएम राइज विद्यालय लोकलुभावन तो है लेकिन व्यावहारिक दुष्परिणाम को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। एबीएल योजना के अंतर्गत उपलब्ध भौतिक संसाधन कबाड़ नहीं हो जाएंगे?
सीएम राइज स्कूल, शिक्षा के निजीकरण की साजिश तो नहीं
शिक्षा को प्रयोगशाला मान कर अरबों खरबों रुपयों की फिजूल खर्ची से बचा जा सकता है। संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था एवं सीएम राइज विद्यालयों पर व्यवहारिक पक्षों को ध्यान में रखते हुए पुनः समीक्षा की दरकार है। एक बड़े षड़यंत्र के तहत निजीकरण की अवधारणा से इंकार नहीं किया जा सकता है।
मध्य प्रदेश परिवहन निगम का निजीकरण भी तो ऐसे ही हुआ था
पूर्व में तात्कालिक मुख्यमंत्री माननीय श्री बाबूलाल गौर ने परिवहन किराया वृद्धि करके मप्र परिवहन निगम रोड़वेज पर ताले जड़ कर लोक परिवहन का निजीकरण कर दिया था। निजी बस मालिकों के दुर्व्यवहार, मनमानी व शोषण का दंश आम जनता भुगतान रही है। यदि ऐसा हुआ तो सामाजिक ताना-बाना बिगड़ना निश्चित है। ज्यादा अच्छा करने के चक्कर में शिक्षा का कहीं रायता न फैल जाए।