मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ में पदलोलुपता इतनी हावी हुई कि संगठन का पंजीयन व अस्तित्व ही समाप्त हो गया। प्रदेश के लाखों कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले इस संगठन का पंजीयन "सहायक पंजीयक फर्म्स एवं संस्था भोपाल" ने महज इसलिये निरस्त कर दिया कि यहाँ प्रांतीय अध्यक्ष पद पर तीन दावेदार हैं। सभी अपने को वैधानिक प्रांतीय अध्यक्ष बताने लगे रहे। यह अलग बात है कि फर्म्स एवं संस्था ने इन्हें नहीं माना था।
संस्था ने अंदरूनी कलह निपटाने के लिए विवाद निवारण पांच सदस्यीय समिति बनाई थी। इसमें सर्वश्री अरूण द्विवेदी, ओपी कटियार, लक्ष्मीनारायण शर्मा, डाॅ सुरेश गर्ग व विजय मिश्रा बतौर सदस्य शामिल किये गये। इस समिति के दो सदस्यों श्री विजय मिश्रा व ओपी कटियार ने स्वयं अपने चुनाव करवा कर व श्री प्रमोद तिवारी ने समिति के तीन सदस्य श्री अरूण द्विवेदी, लक्ष्मीनारायण शर्मा व डाॅ सुरेश गर्ग से सहमति हस्ताक्षर लेकर प्रांताध्यक्ष बने थे। ये समस्त गतिविधियां फर्म्स एवं संस्थाएं भोपाल ने अमान्य कर दी।
संस्था ने समिति को निर्देश दिये थे की आम सहमति से समाधान करें नहीं तो पंजीयन निरस्त कर दिया जाएगा। समिति के कतिपय सदस्य ने तीनों दावेदारों के पक्ष में हस्ताक्षर कर अवांछित भूमिका से रायता फैला दिया। जब बागड़ ही खेत उजाड़ने पर उतर आये तो बागड़ को ही दोषी मानना न्यायसंगत था। समिति के सदस्य विवाद निराकरण में पारदर्शी भूमिका निभाने में अरूचि व स्वयं पदलोलुपता में संलिप्तता से गुरेज नहीं कर पाये। संस्था के निर्देशों व लाखों कर्मचारियों की भावनाओं की बलि दी गई।
मप्र सरकार से निवेदन है कि मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ का पंजीयन बहाल करते हुए विवाद निवारण समिति भंग कर किसी वैधानिक व्यवस्था के तहत सभी दावेदारों की सदस्य सूचियाँ लेकर निर्वाचन करवाकर "निर्वाचित" को बागडोर सौंपना ज्यादा श्रेयस्कर होगा। अप्रत्याशित कार्रवाई से लाखों कर्मचारी अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं-"हमें अपनों ने लूटा गैरों में कहाँ दम था, किश्ती वहां डूबी जहाँ पानी कम था। "दो-दो दावेदार अन्य संगठनों में भी है व शासनादेश की अवहेलना की जा रही है। ऐसे में केवल "मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ का पंजीयन निरस्त" करने की अन्यायपूर्ण कार्रवाई है। इस पर पुनर्विचार होना ही चाहिए।
कन्हैयालाल लक्षकार, सक्रीय सदस्य, मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ।