अपराधी एक ऐसा व्यक्ति होता है जो स्वयं को बचाने के लिए कही भी भाग सकता है। लेकिन कहावत कुछ ज्यादा पुरानी नहीं है कहते हैं कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं यही बात हमारी दण्ड़ प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 77 एवं 78 बताती है, अपराधी कहीं भी रहे उसको वहां की पुलिस गिरफ्तार कर सकती है, और जरूरी हो तो वही के संबंधित सत्र न्यायालय पर भी सुनवाई करवा सकती है क्योंकि हमारी न्यायालय पालिका एकीकृत है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 77 की परिभाषा (सरल एवं संक्षिप्त शब्दों में):-
कोई भी मजिस्ट्रेट या न्यायालय भारत के किसी भी स्थान पर गिरफ्तारी वारण्ट भेज सकता है, यह धारा न्यायालय को कोई स्थानीय सीमा अधिकृत नहीं करती है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 78 की परिभाषा (सरल एवं संक्षिप्त शब्दों में):-
उपर्युक्त धारा के अनुसार (1). न्यायालय या मजिस्ट्रेट भारत के अंदर किसी भी स्थान पर वारण्ट डाक द्वारा भेज सकता है वारण्ट किसी ऐसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट, जिला पुलिस अधीक्षक या पुलिस कमिश्नर को भेजा जा सकता है जिस अधिकारिता सीमा में वारण्ट भेजा जाना है।
(2). वारण्ट जिसको गिरफ्तार किया जाना है उस व्यक्ति का अपराध का सार, कौन सा अपराध है अपराधी का नाम या कोई दस्तावेज हो सहित भेजा जाएगा। अगर अपराध जमानतीय हैं तो अपराध को तुरंत जमानत पर छोड़ दिया जाएगा धारा 71 के अनुसार,अगर अपराध अजमानतीय है तो उसी स्थानीय क्षेत्र के सेशन न्यायाधीश के समक्ष जमानत के लिए भेजना (धारा 81के अनुसार धारा - 437 के नियम पर)।
उधरणानुसार वाद:- एस•बेलप्पन के वाद में फर्म के मालिक की गिरफ्तारी के लिए वारण्ट जारी किया गया। वारण्ट में मालिक का नाम एवं अन्य विवरण नहीं था। केरल उच्च न्यायालय ने ऐसे वारण्ट को अवैध घोषित किया। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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