इंदौर। मुहाड़ी कुंड में डूबे वीरेंद्र और हर्ष की मौत हो चुकी है। दोनों के शव मिल चुके हैं। इनकी मौत की कहानी अपने आप में अलग है। दोनों कुंड में डूब रहे जयेश दोहरिया को बचाने के लिए कूदे थे लेकिन जब वह दोनों जयेश को बचाने के बाद खुद खोह में फंस गए तो उन्हें बचाने के लिए कोई नहीं आया। उल्टा घटनास्थल पर मौजूद 25 से ज्यादा छात्र चुपचाप अपनी अपनी गाड़ियों उठाकर फरार हो गए।
700 फीट नीचे खाई, 40 फीट गहरे कुंड में चार दोस्त नहा रहे थे
कंपेल पुलिस चौकी पर पदस्थ ASI विक्रमसिंह सोलंकी ने बताया कि पिकनिक पर जाने का प्लान छात्र जयेश (जिसे बचाते हुए वीरेंद्र और हर्ष की मौत हो गई) और चिरायु विश्वकर्मा ने बनाया था। 14 टू व्हीलर्स पर सवार होकर करीब 35 छात्र-छात्राएं मुहाड़ी गांव पहुंचे। घाटी से करीब 1 किलोमीटर दूर गाड़ियां पार्क कर दीं और 700 फीट नीचे खाई में उतर गए। इस गहरी खाई में ही कुंड है। इसकी गहराई करीब 40 फीट बताई जाती है। चिरायु, जयेश और वीरेंद्र व हर्ष कुंड में नहाने लगे।
केवल एक छात्र निखिल लोकल रेस्क्यू लेकर पहुंचा, बाकी सब गायब थे
जयेश का पैर फिसला और चिल्लाया तो वीरेंद्र व हर्ष बचाने के लिए आगे बढ़े। जयेश तो बाहर आ गया, लेकिन दोनों खोह में खो गए। निखिल के मुताबिक जब अन्य लोग खाई में उतरे तो वह अपने तीन अन्य दोस्तों गगनदीप, प्रिंसी व संस्कृति के साथ घर के लिए निकल पड़ा था। बायपास तक पहुंचने के बाद उसके पास चिरायु का फोन आया कि हर्ष और वीरेंद्र कुंड में डूब गए हैं। निखिल के अनुसार मैं मौके पर गांव वालों को मदद के लिए लेकर पहुंचा। वहां देखा तो अन्य सभी साथी गायब थे।
ऐसे दोस्त किस काम के जो मौत के वक्त भी काम ना आए
इस घटना के बाद एक बात सही कह रहे हैं कि ऐसी दोस्ती किस काम की जो जान बचाने की भी काम नहीं आए। माना कि घटनास्थल पर मौजूद 25 छात्र कुंड में कूद कर दोनों की जान नहीं बचा सकते थे लेकिन कुछ लोग आसपास के ग्रामीणों को बुलाकर तो ला सकते थे। कोई डायल 100 पर फोन करके मदद तो मान सकता था। हो सकता था डायल 100 घटनास्थल के आसपास हो। हो सकता था ग्रामीण मिल जाते और दोनों को बचाया जा सकता था। कोशिश तो करनी चाहिए थी।