हमने आपको पिछले लेख में एक महत्वपूर्ण बात बताई थीं कि दण्ड़ संहिता की धाराओं की छोड़ी छोटी पर मोटी मोटी बातों को समझना बहुत मुश्किल होता है, आज हमने जिस धारा पर लेख लिखा है वह धारा 330, 331 के सामान रूप माना जाता है दोनो धाराएं समान ही दिखती है।
• धारा 330 कोई व्यक्ति को चोट पहुँचाकर या पहुचाने की धमकी देकर किसी बात की स्वीकृति करवाना या उसके हितबद्ध से गलत जानकारी दिलवाना आदि अपराध होता है।
•धारा- 331 उपर्युक्त धारा में घोर उपहति की बात करती है।
लेकिन धारा 348 वहाँ लागू होगी किसी व्यक्ति को रोककर कोई स्वीकृति लेना आदि जानिए।
(आरोपी पर कभी-कभी तीनो धाराओं पर अपराध दर्ज हो जाता है।)
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 348 की परिभाषा:-
अगर कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को इस उद्देश्य से रोककर रखता है:-
1. किसी बात की स्वीकृति करवाने के लिए।
2. कोई बात को जबर्दस्ती उगलवाने या जानने के लिए।
3. परिरोध व्यक्ति के किसी हितबद्ध को मजबूर करने के लिए।
4. या कोई दस्तावेज या संपत्ति को प्राप्त करने के लिए।
इस उद्देश्य से रोककर रखना इस धारा के अंतर्गत दण्डनीय अपराध है।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 348 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-
यह अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं है, यह संज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई का अधिकार किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट को होता है। सजा- इस अपराध के लिए तीन वर्ष की कारावास एवं जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।
उधरणानुसार वाद:- आन्ध्रप्रदेश राज्य बनाम एन•वेणुगोपाल-
पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध आरोप था कि उन्होंने अरीगे रमनुआ नामक किसी संदेहास्पद व्यक्ति से अनुसंधान (इन्वेटिगेशन) के दौरान स्वीकृति उगलवाने के लिए उसे गंभीर चोट करके प्रताड़ित किया था। वे पुलिस अधिकारी धारा 331 एवं 348 के दोषी थे, लेकिन मद्रास जिला पुलिस अधिनियम, 1859 की धारा 53 का लाभ देते हुए आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय ने दोषमुक्त कर दिया था। अपील में उच्चतम न्यायालय ने हाई कोर्ट के निर्णय को पलट दिया एवं उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि अभियुक्तों की दोषमुक्ति को अपास्त करते हुए उन्हें धारा 331/348 के अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाए। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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