भारतीय दंड संहिता 1860 में लगभग सभी प्रकार के संभावित अपराधों के लिए धाराओं का निर्धारण किया गया है। यदि कोई व्यक्ति किसी कार्यक्रम, मीटिंग, टेंडर अथवा इसी प्रकार के आयोजन में जा रहा है जिसमें समय पर पहुंचना अनिवार्य है। और कोई दूसरा व्यक्ति उसका रास्ता रोकने के लिए बल प्रयोग करें ताकि वह समय पर अपने लक्ष्य तक ना पहुंच पाए, भारतीय दंड संहिता में इस तरह के अपराध के लिए अलग से धारण निर्धारित की गई है।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 357 की परिभाषा:-
अगर कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति जो सड़क, रास्ते आदि से जा रहा है और उसे रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करता है, ताकि वह व्यक्ति निर्धारित समय पर अपने गंतव्य तक ना पहुंच पाए। इस तरह का अपराध भारतीय दंड संहिता की धारा 357 के तहत पंजीबद्ध किया जाएगा।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 357 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं है, यह संज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई का अधिकार किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट को होता है। सजा- इस अपराध के लिए दो वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनो से दाण्डित किया जा सकता है।
IPC की धारा 357 के अंतर्गत किस तरह के अपराध दर्ज होंगे
टेंडर की मीटिंग में जा रहे ठेकेदार को रोकना, ताकि वह टेंडर की प्रक्रिया पूरी होने तक पहुंची नहीं पाए।
यात्री को एयरपोर्ट अथवा रेलवे स्टेशन तक पहुंचने से रोकना ताकि उसकी फ्लाइट या ट्रेन छूट जाए।
किसी प्रतियोगी परीक्षार्थी को रास्ते में बलपूर्वक रोकना निर्धारित समय पर परीक्षा कक्ष में प्रवेश न कर पाए।
किसी लड़के अथवा लड़की को रास्ते में बलपूर्वक रोकना ताकि वह निर्धारित मुहूर्त पर विवाह संबंधी कार्यक्रमों में शामिल ना हो पाए।
और इसी प्रकार की सभी कारण जिसमें यह प्रमाणित किया जा सकता है कि व्यक्ति का समय पर पहुंचना अनिवार्य था। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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