छोटे-मोटे विवाद समाज में हमेशा होते रहते हैं। लगभग हर झगड़े में कोई ना कोई व्यक्ति थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठा लेता है। कभी-कभी सामने वाले को डराने के लिए सड़क पर पड़ा हुआ पत्थर उठा लिया जाता है। यदि थप्पड़ या पत्थर मार दिया जाएगा तो निश्चित रूप से अपराध है परंतु क्या आप जानते हैं इस तरह से थप्पड़ या मुक्का मारने के लिए हाथ उठाना अथवा हमला करने के लिए पत्थर उठाना भी अपराध है। यदि मारने के लिए पत्थर फेंका गया और वह निशाने पर नहीं लगा तब भी अपराध है।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 358 की परिभाषा:-
अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को भयभीत करने के लिए आपराधिक बल या प्रतीकात्मक हमला करता है, जिससे किसी भी प्रकार की क्षति नहीं होती परंतु पीड़ित व्यक्ति घबराहट महसूस करता है तब भी ऐसा करने वाला व्यक्ति भारतीय दंड संहिता की धारा 358 के अंतर्गत दोषी माना जाएगा।
धारा 355 एवं धारा 358,में अन्तर
1. धारा-355 वहाँ लागू होती है जहाँ पर कोई आपराधिक बल या हमला का प्रयोग अनादर करने के लिए किया गया हो।
2. धारा - 358 किसी भी उद्देश्य को लेकर आपराधिक बल या हमला करना इसमे अनादर होना आवश्यक नहीं होता है।
भारतीय दंड संहिता,1860 की धारा 358 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 320 की सारणी 1 के अंतर्गत उस व्यक्ति से समझौता योग्य है जिसे आपराधिक बल या हमले द्वारा डराया गया हो। यह असंज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होते हैं, इनकी सुनवाई का अधिकार किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट को होता है। सजा:- इस अपराध के लिए एक मास की कारावास या दो सौ रुपये जुर्माना या दोनों से दाण्डित किया जा सकता है।
:- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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