फालेन आउट अतिथि विद्वान ने आत्महत्या कर ली, सरकार के रवैए से निराश था - MP EMPLOYEE NEWS

Bhopal Samachar
भोपाल
। शासकीय महाविद्यालय कोतमा जिला अनूपपुर में पदस्थ फालेन आउट अतिथि विद्वान गोविंद प्रसाद प्रजापति को दिसम्बर 2019 से विवादित सहायक प्राध्यापक भर्ती के कारण फालेन आउट करके बेरोजगार कर दिया गया था। 

तभी से वे आर्थिक तंगी के कारण बेहद परेशान एवं तनावग्रस्त थे एक साल बीत जाने पर भी शिवराज सरकार ने भी इनकी सुध नहीं ली जबकि अतिथि विद्वानों के नाम पर ही शिवराज को इस बार सत्ता मिली थी, इस सरकार से भी फॉलेन आउट अतिथि विद्वान गोविंद प्रजापति को निराशा मिली तो उन्होंने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया और अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। 

अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के संयोजक व संघ के अध्यक्ष डॉ देवराज सिंह के अनुसार आज अतिथि विद्वान बेहद बदहाल स्थिति में जीवन यापन कर रहे है। फालेन आउट होकर बेरोजगार हो जाने से स्थिति और भयावह हो गई है।आर्थिक तंगी और अनिश्चित भविष्य ने अतिथिविद्वानों को अंदर तक तोड़ के रख दिया है। हमने राज्य शासन को हाल ही में पत्र लिखकर अवगत कराया था कि अतिथिविद्वान फालेन आउट होने व कोरोना संकट के कारण आर्थिक रूप से टूट चुके हैं। जहां सरकार सभी कमजोर वर्गों के लिए सहायता कर रही है। इसी तरह सरकार को फालेन आउट अतिथिविद्वानों के लिए भी सहायता करनी चाहिए।जिससे वे इस संकट की घड़ी में अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें। 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से अतिथि विद्वानों ने फ़िर लगाई गुहार
अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के मीडिया प्रभारी डॉ आशीष पांडेय ने बताया कि हमने दो दशकों तक इस प्रदेश में नियमितीकरण के लिए संघर्ष किया है।पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार से वचनपत्र अनुसार नियमितीकरण हेतु हमने लंबा संघर्ष किया है।हमारे संघर्षों के गवाह स्वयं मुख्यमंन्त्री शिवराज सिंह चौहान,तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव,वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ नरोत्तम मिश्रा रहे हैं।अतिथिविद्वानों के मुद्दे को विपक्ष में रहते स्वयं शिवराज सिंह जी ने विधानसभा सत्र के दौरान उठाया था।उन्होंने कहा था कि नियमितीकरण के संघर्ष में शिवराज हमेशा अतिथिविद्वानों के साथ है। 

अतः हमें आशा ही नही पूर्ण विश्वास है कि मुख्यमंत्री जी हमारे नियमितीकरण के संबंध में जल्द निर्णय करेंगे।सरकार को अविलंब फॉलेन आउट अतिथि विद्वानों को सेवा में वापस लेने का निर्णय लेना चाहिए।हमारे अतिथि विद्वान साथी मानसिक अवसाद बेरोजगारी और आर्थिक बदहाली के कारण महामारी नहीं बल्कि आत्महत्या से मरते जा रहे हैं।दिवंगत अतिथि विद्वान स्व. गोविन्द प्रजापति बेरोजगार होने से बेहद अवसाद में थे। 

डॉ आशीष पांडेय ने आरोप लगाया है कि यह आत्महत्या नही बल्कि सरकार की शोषणकारी नीति द्वारा की गई हत्या है।आर्थिक तंगी ने अतिथि विद्वानों को इस कदर परेशान कर रखा है कि देखा जाय तो किसानों से ज्यादा आत्महत्या का औसत अतिथि विद्वानों का है।गोविंद प्रजापति अक्सर अपने मित्रों के बीच आर्थिक तंगी का जिक्र किया  करते थे और आज उन्होंने आत्महत्या जैसा कदम उठाकर मौत को गले लगा लिया।इस साल में औसत रूप से हर माह एक अतिथि विद्वान फांसी के फंदे पर झूल रहा है। 

वर्तमान सरकार से भी अभी तक केवल आश्वासन ही मिला है।नई सरकार के गठन के बाद चार अतिथि विद्वानों ने फांसी के फंदे पर झूल कर जान दी।पिछली सरकार के समय से जारी अतिथि विद्वान आत्महत्या का सिलसिला बदस्तूर जारी है।सूबे के मुखिया से अनुरोध है कि तत्काल फॉलेन आउट हुए अतिथि विद्वानों को सेवा में लेते हुए नियमितीकरण करें जिससे आगे ऐसी कोई अप्रिय घटना विद्वानों के साथ न घटे।

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