जबलपुर। मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश जारी करके एक बार फिर स्पष्ट किया है कि जब तक ओबीसी आरक्षण विवाद का निपटारा नहीं हो जाता तब तक मध्यप्रदेश शासन द्वारा की जा रही भर्ती प्रक्रिया में ओबीसी आरक्षण 14% से अधिक नहीं होना चाहिए। इस बार विवाद जीवाजी यूनिवर्सिटी ग्वालियर द्वारा प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर की भर्ती से संबंधित है।
जीवाजी यूनिवर्सिटी ग्वालियर ने प्रोफेसर भर्ती में 27% से ज्यादा ओबीसी आरक्षण दे दिया
याचिकाकर्ता डॉ.राममोहन सिंह भदौरिया की ओर से अधिवक्ता बृंदावन तिवारी ने मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय में पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर ने चार फरवरी, 2021 को तीन पदों प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर की भर्ती का विज्ञापन निकाला। इस भर्ती प्रक्रिया में ओबीसी आरक्षण 27% से अधिक चला गया है। जबकि 14% से अधिक नहीं होना चाहिए। इस वजह से अन्य वर्ग के आवेदकों का हक मारे जाने की स्थिति पैदा हो गई है। वैसे भी ओबीसी आरक्षण का मामला हाई कोर्ट में पहले से विचाराधीन है और हाई कोर्ट ने अंतरिम आदेश के जरिये 14% से अधिक ओबीसी आरक्षण पर रोक बरकरार रखी है। ऐसे में जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर मनमानी नहीं कर सकता।
ओबीसी आरक्षण पर अंतरिम आदेश के साथ सभी संबंधित को नोटिस जारी
हाई कोर्ट ने सभी बिंदुओं पर गौर करने के बाद ओबीसी को 14 फीसद से अधिक आरक्षण न दिए जाने का अंतरिम आदेश पारित कर दिया। मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण से संबंधित अंतरिम आदेश के साथ ही राज्य शासन, प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा, प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग, कुलपति व कुलसचिव जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर को नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया गया है। इसके लिए छह सप्ताह का समय दिया गया है।