मप्र दुकान एवं स्थापना अधिनियम,1958 - The MP Shops & Establishment Act, 1958
हमने अक्सर देखा है कि मध्यप्रदेश की बड़ी-बड़ी निवासयुक्त होटल हो या कोई भी छोटा मोटा भोजनालय हो बहुत से ऐसे स्थापना है जहां पर कर्मचारियों को नियम विरुद्ध नियुक्त कर लिया जाता है। इस तरह की नौकरी को 'रख लिया' शब्द का उपयोग किया जाता है। जिनसे रात दिन काम करवाया जाता है और वेतन भी कम दिया जाता है क्या ऐसा करना होटल मालिक या प्रबंधक का अपराध की श्रेणी में आएगा। हाँ तो किसी कानून का उल्लंघन माना जाएगा जानिए महत्वपूर्ण नियम।
म.प्र. दुकान एवं स्थापना अधिनियम,1958 की धारा- 18 (ए) एवं धारा 23(ए) की परिभाषा (सरल एवं संक्षिप्त शब्दों में):-
कोई भी निवासयुक्त होटल, उपाहार गृह, भोजनालय एवं नाट्यशाला, सार्वजनिक आमोद-प्रमोद या मनोरंजन के अन्य स्थानों में काम करनें वाले प्रत्येक कर्मचारियों, श्रमिको को नियोजक द्वारा एक पहचान पत्र दिया जाएगा। उस पहचान पत्र को वह ड्यूटी के समय अपने पास रखेगा, पहचान पत्र में नियोजक का नाम, आयु, कार्य के घंटे, विश्राम समय, छुट्टी का दिन, कर्मचारी का पहचान चिन्ह, निजोजक के हस्ताक्षर(दिनांक सहित),कर्मचारी के हस्ताक्षर या अंगूठा निशान आदि स्पष्ट होगा।
अगर कोई नियोजक या प्रबंधक कर्मचारियों या श्रमिकों का पहचान पत्र जारी नहीं करता है तो वह उपर्युक्त धारा का उल्लंघन करेगा।
मध्यप्रदेश दुकान एवं स्थापना अधिनियम, 1958 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान :-
अगर कोई नियोजक या प्रबंधक अपने दायित्वों का पालन नहीं करता है तब वह अधिनियम की धारा 46,47,48 के अंतर्गत दंडनीय होगा। इनकी सुनवाई किसी भी द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट के पास होगी। सजा:- कम से कम 500 रुपये जुर्माने से एक हजार रुपए का जुर्माना या तीन माह से एक वर्ष तक कि कारावास हो सकती है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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