कल २१ मार्च को आपकी सुबह फिर लॉकडाउन के साथ होगी | एक बरस बाद भी यह दुष्काल ने आपका हमारा पीछा नहीं छोड़ा है | अस्पताल, मौत और वेक्सीन सारे संसार ने देख लिए हैं | आगे और क्या देखना है किसी को नहीं पता | एक बरस पहले लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में, जब सामान्य जीवन थम गया, तब सभी को यही लगा कि जिंदगी कटेगी कैसे? फिर धीरे-धीरे यह भी लगने लगा कि अब इसी के साथ रहना है। प्रकृति को हर बार योजनाएं नहीं बनानी पड़तीं, कई चीजें अपने आप होती हैं। जीवन अपनी गति से चलता रहता है और किसी न किसी किनारे लगता है।
लॉकडाउन के कठिन समय में बहुत से लोगों को मैंने अपने दोस्तों को अपने शौक पूरे करते देखा | मेरे बालसखा डॉ प्रमोद अग्रवाल ने इस दौरन गले की जटिल शल्यक्रिया के बाद गायन का अभ्यास कर डाला | अब वे बेहतर गाने लगे हैं |हमारी मित्र मंडली दुष्काल के पहले किसी मित्र के निवास पर मिलती थी | दुष्काल में यह परिवार मिलन बंद हो गया | पिछले महीने मैंने और मेरी पत्नी ने योजना बनाई थी की होली के बाद इस मिलन प्रक्रिया को आगे बढाये और डॉ प्रमोद अग्रवाल के गायन का कार्यक्रम रखे | फिर से लॉकडाउन की आहटें हैं| पढ़ने-लिखने वाले बहुत से लोगों ने लॉकडाउन काल का अच्छा सदुपयोग कर लिया।
खुद मेरे साथ यह हुआ कि मैंने धीरे-धीरे बहुत सारे वे विषय पढ़ डाले जो किस पाठ्यक्रम में सम्मिलित नहीं किया जा सकते |इस काल में किताबों और संवादों के ऑनलाइन विस्तार-प्रसार ने भी हमें बहुत नया सिखाया है। हां, थियेटर, सिनेमा की दुनिया को ज्यादा बड़ा नुकसान हुआ है। कुछ ऐसी कलाएं और साधनाए हैं, जो समूह में संभव होती हैं। हम जैसे को का काम तो इसलिए भी चल गया कि वह स्वयं लिखने-बनाने वाले हैं, लॉकडाउन के सन्नाटे में मुझे खुद भय तो नहीं लगा, लेकिन थोड़ी-बहुत परेशानी जरूर हुई, दुकानें वगैरह जब बंद हो गई थीं, कहां से जरूरी सामान आएगा? कौन लाएगा? लेकिन यह ऐसा समय था, जब भले पड़ोसियों से भी खूब मदद मिली। मोबाईल ने रोज अन्य राज्य में पडौसी राज्य में कार्यरत बेटे बहु, और अविर्भाव,आर्वी के साथ विदेश बसे बेटी, दामाद और मिनी से मुलाकात कराई|
हम मुझे चिंता हो रही है कि इस बार लॉकडाउन लंबा चला, तो खर्च कैसे चलेगा? देश में करोड़ों लोगों के मन में यह चिंता हो रही है। ऐसी चिंताओं ने ही लोगों को भविष्य के बारे में अलग ढंग से सोचने के लिए विवश किया। लॉकडाउन काल की एक बड़ी उपलब्धि यह रही है कि बहुत से लोगों ने घर का महत्व समझ में आया । वास्तव इससे सबके लिए घर एक नई तरह से प्रगट हुआ है। प्रार्थना है कि वो दृश्य फिर न लौटे जिसने तब खासतौर पर विचलित किया था , लाखों लोग पैदल घर लौट हैं। घर का एक नया ही अर्थ खुला, जिसे रोजी-रोटी के कारण बहुत से लोग भूल से गए थे। अब बड़ी चिंता यह है कि वैसा ही कुछ घटा सरकार कैसे इतने लोगों को संभालेगी? काम-धंधे गंवाने वालों का क्या होगा? जीवन का यह बहुत सुंदर पक्ष है कि आप बहुत देर तक हंस नहीं सकते, तो बहुत देर तक रो भी नहीं सकते। बहुत देर तक आप भय में नहीं रह सकते। बहुत देर तक आप निश्चिंत नहीं रह सकते। यही जीवन संतुलन सदियों से चला आ रहा है।
सबके जीवन में कोई न कोई गति मिलती है अच्छी हो या खराब। गति को जब आप पहचानते हैं, तो जीवन से सीखते हैं। लॉकडाउन में लोगों ने छोटी-छोटी चीजों पर गौर करना शुरू किया है। इसे जारी रखना होगा सारे संघर्ष के साथ, संघर्ष इस बार जटिल हो सकता है, पर जीत सुनिश्चित है।
तब कुछ लोग बिना कहे -सुने इस दुनिया से बिदा ले गये। उनकी यादें आपके मन में छप गई हैं, जो आपको अक्सर याद आएंगी और दुखी करेंगी। वह ऐसा दौर था, हम किससे शिकायत करते, सभी परेशानी में थे। ये जो सुख-दुख के पलडे़ हैं, ये ऐसे ही उतरते-चढ़ते रहते हैं, यह जरूरी है कि हम खुद को हर स्थिति के लिए तैयार रखें। भयभीत न हों।
अगर आपने गाँधी जी को पढ़ा है तो गांधीजी ने सिखाया था कि भेद मत करो, अपने और दूसरे में। अपने-पराये में हम अक्सर बहुत भेद करते हैं। लॉकडाउन के दौरान यह भेद कुछ दूर हुआ है, उसे अभी और दूर करना है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।