कहा जाता है कि इसी इस फटिक शिला पर प्रभु श्री राम एवं माता सीता विश्राम किया करते थे। माता सीता ने प्रभु श्री राम के साथ ज्यादातर समय इसी शीला पर व्यतीत किया है। इस शिला पर माता सीता के चरण चिन्ह अभी भी दर्शन के लिए मिल जाते हैं। प्रभु श्री राम ने इसी शिला पर बैठकर तिनके से धनुष बाण बनाया था, उसके चिन्ह भी दिखाई देते हैं। देवताओं के राजा इंद्र का पुत्र जयंत जो कौवे के रूप में यहां आया था, उसकी चौंच का चिन्ह भी यहां बताया जाता है।
कौवे को एक आंख से कम क्यों दिखता है, धार्मिक कथा
चित्रकूट में जहां माता सीता ने प्रभु श्रीराम के साथ अपने वनवास का सबसे अच्छा समय व्यतीत किया है, स्फटिक की शिला मौजूद है। इसी शिला की कथा में इस प्रश्न का भी उत्तर है कि कौवा पक्षी काना क्यों होता है। उसे एक आंख से कम क्यों दिखाई देता है। कथा इस प्रकार है:-
एक बार माता सीता चित्रकूट में इस पर टिकी शीला के ऊपर बैठकर मंदाकिनी नदी के मनोरम दृश्य को निहार रहीं थीं। उसी समय देवताओं के राजा इंद्र का पुत्र जयंत कौवा पक्षी का रूप धारण करके वहां आ पहुंचा। जयंत इस प्रकार रूप बदलकर मनुष्यों को तंग किया करता था। लोगों को परेशान करने में उसे आनंद आता था। माता सीता को तंग करने के लिए उसने माता के पैर में चौंच मार दी। माता के पैरों से रक्त बहने लगा। यह देखकर प्रभु श्री राम क्रोधित हो गए। उन्होंने स्फटिक की शिला पर मौजूद तिनकों से धनुष बाण बनाया और प्रहार कर दिया।
प्रभु श्रीराम के प्रहार से बचने के लिए जयंत तीनों लोको में भागता रहा परंतु कहीं भी उसे संरक्षण नहीं मिला। अंत में उसे अपनी भूल का प्रायश्चित हुआ और वापस माता सीता के चरणों में दंडवत करके क्षमा याचना करने लगा। माता सीता ने पुत्र जयंत को क्षमा कर दिया परंतु प्रभु श्रीराम का प्रहार खाली नहीं जा सकता था इसलिए कौवा पक्षी के रूप में आए जयंत की आंख में प्रतीकात्मक प्रहार हुआ और तभी से कौवा पक्षी को एक आंख से कम दिखाई देता है।