पिछले लेख की धारा 339 में हमने आपको बताया था कि किसी व्यक्ति के रास्ते में रुकावट उत्पन्न करना उपर्युक्त धारा के अंतर्गत दंडनीय अपराध होता है। आज के लेख की धारा भी उसी के समानरूपी है लेकिन अंतर बहुत है दोनो धाराओं में जैसे अगर किसी व्यक्ति का दोपहर 12 बजे पेपर हैं और उसे परीक्षा केंद्र में न जाने देने के लिए 2 बजे तक रोककर रखा जाएगा एक समय सीमा के अनुसार तब वह अपराध धारा 339 के अंतर्गत न होकर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 340 के अंतर्गत होगा। और इस अपराध के लिए सजा भी धारा 339 के अपराध से कठोर एवं ज्यादा होगी।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 340 की परिभाषा【सदोष परिरोध का अपराध】:-
अगर किसी व्यक्ति को समय सीमा के अंतर्गत रोककर रखा गया जिससे उसके आने जाने की स्वतंत्रता या कोई जरूरी कार्य करनें में बाधा उत्पन्न हो रही हो और समय निकल जाने पर उसे असफलता की प्राप्ति हो जैसे- परीक्षा केंद्र में जाने रोकना, किसी अर्जेंट हाजरी के लिए न जाने देना, ड्यूटी समय पर नहीं जाने देना, या समय पर ड्यूटी से नहीं छोड़ना, बेवजह रोक कर रखना,लॉक-आप मे बेवजह रोक कर रखना आदि। ऐसा समय निकलने तक रोककर रखने वाला व्यक्ति धारा 340 के अंतर्गत दोषी होता है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 340 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-
यह अपराध दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 320 के अंतर्गत समझौता योग्य होते हैं इनका समझौता धारा 320(1) के अनुसार उस व्यक्ति से किया जाता है जिसके रास्ते में रूकावट उत्पन्न की गई है। इस धारा के अपराध के लिए दण्ड का प्रावधान भारतीय दण्ड संहिता की धारा 342 में किया गया है, यह संज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई का अधिकार किसी भी मजिस्ट्रेट को होता है। सजा- इस अपराध के लिए एक वर्ष की कारावास या एक हजार रु.का जुर्माना या दोनो से दाण्डित किया जा सकता है।
उधरणानुसार वाद:- धर्मू बनाम राज्य:- पुलिस अधिकारी ने एक व्यक्ति को पुलिस थाने में लॉक-आप मे बन्द रखा इसके बावजूद कि उस व्यक्ति ने जमानत पर छोड़े जाने का न्यायालयीन आदेश उस पुलिस अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत कर दिया था। अतः न्यायालय द्वारा पुलिस अधिकारी को सदोष परिरोध के अपराध का दोषी माना गया। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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