जब आप लोगों की भलाई के लिए काम करते हैं तो वह लोग भले ही आपको धन्यवाद दें या ना दें लेकिन नीले आसमान के ऊपर आपके इष्ट देव और कुलदेवता आपकी तरक्की और प्रसिद्धि सुनिश्चित करते जाते हैं। बांग्लादेश से शरणार्थी के रूप में भारत आए दूधवाले चंद्र शेखर घोष की कहानी कुछ ऐसी ही है। उनका बैंक आज 50,000 करोड़ की वैल्यू रखता है।
दूध बेचने जाते थे, दूध पीने को नहीं मिलता था
1960 में त्रिपुरा के अगरतला में जन्मे घोष के पिता मिठाई की एक छोटी सी दुकान चलाते थे। इसमें मुश्किल से ही उनके नौ सदस्यों के परिवार का गुजारा चल पाता था। इसलिए चंद्र शेखर घोष ने बचपन में काफी आर्थिक तंगी के हालात देखे हैं। वह अपने पिता की दुकान में काम करते थे लेकिन कभी पढ़ाई नहीं छोड़ी।
आश्रम में रहकर ग्रेजुएशन किया, ट्यूशन से कॉलेज की फीस कमाई
चंद्रशेखर घोष का परिवार बांग्लादेश का रहने वाला है। वह शरणार्थी बनकर भारत आए थे। चंद्रशेखर ने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई ग्रेटर त्रिपुरा के एक सरकारी स्कूल में की। उसके बाद ग्रैजुएशन करने के लिए वह बांग्लादेश चले गए। वहां ढाका यूनिवर्सिटी से 1978 में स्टैटिस्टिक्स में ग्रैजुएशन किया। ढाका में उनके रहने और खाने का इंतजाम ब्रोजोनंद सरस्वती के आश्रम में हुआ। उनके पिता ब्रोजोनंद सरस्वती के बड़े भक्त थे। सरस्वती जी का आश्रम यूनिवर्सिटी में ही था, इसलिए आसानी से चंद्रशेखर के वहां रहने का इंतजाम हो गया। बाकी फीस और कॉपी-किताबों जैसी जरूरत के लिए घोष ट्यूशन पढ़ाया करते थे।
BRAC ने उस रास्ते पर खड़ा कर दिया जिसकी मंजिल आसमान था
साल 1985 उनकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। मास्टर्स खत्म करने के बाद उन्हें ढाका के एक इंटरनेशनल डेवलपमेंट नॉन प्रॉफिट ऑर्गैनाइजेशन (BRAC) में जॉब मिल गई। यह संगठन बांग्लादेश के छोटे-छोटे गांवों में महिलाओं को सशक्त करने का काम करता था। घोष कहते हैं कि वहां महिलाओं की बदतर स्थिति देखकर मेरी आंखों में आंंसू आ जाते थे। उनकी हालत इतनी बुरी होती थी कि उन्हें बीमार हालत में भी अपना पेट भरने के लिए मजदूरी करनी पड़ती थी।
15 साल की नौकरी के अनुभव ने आत्मा विश्वास दिया और अपना काम शुरू हुआ
उन्होंने BRAC के साथ लगभग डेढ़ दशक तक काम किया और 1997 में कोलकाता वापस लौट आए। 1998 में उन्होंने विलेज वेलफेयर सोसाइटी के लिए काम करना शुरू कर दिया। यह संगठन लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए काम करता था। दराज वाले इलाके के गांवों में जाकर उन्होंने देखा कि वहां की स्थिति भी बांग्लादेश की महिलाओं से कुछ ज्यादा भिन्न नहीं थी। घोष के अनुसार, महिलाओं की स्थिति तभी बदल सकती है, जब वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनें लेकिन उस वक्त अधिकांश महिलाएं अशिक्षित रहती थीं, उन्हें बिजनेस के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसी अशिक्षा का फायदा उठाकर पैसे देने वाले लोग उनका शोषण करते थे।
2009 में दूधवाले चंद्रशेखर का प्राइवेट बैंक शुरू हुआ
2009 में घोष ने बंधन को रिजर्व बैंक द्वारा NBFC यानी नॉन बैंकिंग फाइनैंस कंपनी के तौर पर रजिस्टर्ड करवा लिया। उन्होंने लगभग 80 लाख महिलाओं की जिंदगी बदल दी। वर्ष 2013 में RBI ने निजी क्षेत्र द्वारा बैंक स्थापित करने के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे। घोष ने भी बैंकिंग का लाइसेंस पाने के लिए आवेदन कर दिया। RBI ने जब लाइसेंस मिलने की घोषणा की तो हर कोई हैरान रह गया था। क्योंकि इनमें से एक लायसेंस बंधन को मिला था। बैंक खोलने का लायसेंस कोलकाता की एक माइक्रोफाइनेंस कंपनी को मिलना सच में हैरत की बात थी। 2015 से बंधन बैंक ने पूरी तरह से काम करना शुरू कर दिया।