नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है जिसमें प्रार्थना की गई है कि जब लड़का और लड़की दोनों नाबालिग हों तो पोस्को एक्ट नहीं लगना चाहिए। इस मामले में जिला अदालत और हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़के को पोस्को एक्ट का दोषी मानते हुए दंडित किया है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इस मामले का फैसला भारत में इस बात को भी निर्धारित करेगा कि भविष्य में यदि लड़का और लड़की दोनों नाबालिग हुए तो लड़के के खिलाफ पोस्को एक्ट प्रभावशाली होगा या नहीं।
पास्को एक्ट मामले में मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट में मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अगर नाबालिग लड़की किसी नाबालिग लड़के के साथ प्यार में और सहमति से संबंध में जाती हैं तो भी पॉक्सो कानून के तहत लड़के के खिलाफ मामला बनता है। सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दाखिल की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सुनवाई का फैसला किया है और तामिलनाडु सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है। साथ ही याचिकाकर्ता को प्रोटेक्शन देते हुए राज्य सरकार से कहा है कि वह कोई दंडात्मक कार्रवाई न करें।
जब दोनों नाबालिग हों तो पोस्को एक्ट नहीं लगना चाहिए: याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ता की ओर से दाखिल अर्जी में कहा गया है कि अगर नाबालिगों के बीच प्रेम संबंध बन जाए और सहमति से अफेयर हो गया हो और किसी कारण संबंध में खटास आ जाए तो पॉक्सो कानून का इस्तेमाल इस कानून के उद्देश्य को खराब करता है। पॉक्सो कानून ऐसे मामले में कुछ नहीं बोलता जब लड़का और लड़की दोनों ही नाबालिग हों और दोनों में सहमति से संबंध बन जाए तो ऐसे मामले में कानून का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।
नाबालिगों के बीच सहमति से फिजिकल रिलेशन बना
ऐसी सहमति वाली घटना को निश्चित तौर पर पॉक्सो जैसे गंभीर एक्ट के दायरे में नहीं देखना चाहिए। इस मामले में याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा था कि नाबालिग लड़के और लड़की के बीच सहमति वाले अफेयर के मामले को समझौतावादी बनाया जाना चाहिए। लेकिन हाई कोर्ट ने ये कहते हुए अर्जी खारिज कर दी कि पॉक्सो एक्ट के तहत हुआ अपराध समझौतावादी नहीं है। निचली अदालत ने इस मामले में आरोपी को पॉक्सो मामले में सजा दी थी जिसके खिलाफ आरोपी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा कि दोनों ही साथ रहे थे। उनके बीच के संबंध सहमति वाले थे। इस दौरान याचिकाकर्ता लड़के और लड़की की उम्र 17 साल के आसपास थी। इस मामले में दोनों की सहमति थी और कोई हिंसा नहीं थी बल्कि बाद में संबंध में खटास आ गई थी। सुप्रीम कोर्ट में मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है जिसमें याची ने मामले को समझौतावादी करने की गुहार लगाई है।
क्या कहता है पॉक्सो कानून
कानूनी जानकार अमन सरीन बताते हैं कि 18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का सेक्शुअल नेचर का किया गया अपराध पॉक्सो कानून के दायरे में आता है। इस कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के लड़के या लड़की दोनों को ही सुरक्षा दी गई है। इस तरह के मामलों की सुनवाई स्पेशल कोर्ट में होती है और बच्चों के साथ होने वाले अपराध के लिए उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान किया गया है। वह बताते हैं कि इस एक्ट के तहत बच्चों को सेक्शुअल असॉल्ट, सेक्शुअल हरासमेंट और पॉर्नोग्राफी जैसे अपराध से सुरक्षा दी गई है। 2012 में बने इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा का प्रावधान किया गया है।
पॉक्सो कानून की धारा-3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट को परिभाषित किया गया है। इसके तहत कानून कहता है कि अगर कोई शख्स किसी बच्चे के शरीर के किसी भी हिस्से में प्राइवेट पार्ट डालता है या फिर बच्चे के प्राइवेट पार्ट में कोई भी दूसरी चीज डालता है तो यह धारा 3 के तहत अपराध है। इसके अलावा इसी धारा के तहत बच्चों को किसी और के साथ ऐसा करने के लिए कहना या आरोपी बच्चे से खुद अपने साथ ऐसा करने के लिए कहे, तो भी अपराध होगा। इसके लिए धारा-4 में सजा का प्रावधान किया गया है। इसके तहत दोषी पाए जाने पर मुजरिम को कम से कम 7 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
वहीं धारा-7 के तहत सेक्शुअल असॉल्ट को परिभाषित किया गया है। एडवोकेट अमन सरीन के मुताबिक अगर कोई शख्स किसी बच्चे के प्राइवेट पार्ट को टच करता है या फिर अपने प्राइवेट पार्ट को बच्चों से टच कराता है तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर धारा-8 के तहत 3 साल से 5 साल तक कैद की सजा का प्रावधान किया गया है।