यदि आप भारत के किसी एक शहर में है और बिना हेलमेट बाइक चला रहे हैं तो आप चाहे कोई भी हो, एक फिक्स जुर्माना वसूल किया जाएगा। कई प्रकार के अर्थदंड इसी आधार पर वसूल किए जाते हैं परंतु न्यायालय में एक जैसा अपराध करने वाले दो अलग-अलग अपराधियों पर अलग-अलग जुर्माना लगाया जाता है। किसी अपराधी से कम और किसी अपराधी से ज्यादा जुर्माना वसूल किया जाता है। सवाल यह है कि क्या न्यायालय द्वारा भेदभाव किया जाता है। बड़ा सवाल यह है कि जहां सब कुछ कानून के तहत चलता है वहां जुर्माना का निर्धारण किस कानून के तहत होता है। आइए पता लगाते हैं:-
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 63 की परिभाषा:-
जुर्माने की राशि को निर्धारित करते समय न्यायालय मामले की परिस्थितियों तथा आरोपी के जीवन के स्तर या आर्थिक स्थिति को विचार में लेगा, क्योंकि यदि जुर्माने की राशि इतनी अधिक हो जिसका भुगतान करना आरोपी के आर्थिक सामर्थ्य के बाहर हो, तब उस दशा में इस दण्ड का कोई महत्व ही समाप्त हो जाएगा। न्यायालय का कर्तव्य है कि वह आरोपी की आर्थिक क्षमता पर विचार करते हुए जुर्माने की एक निश्चित राशि का उल्लेख दंडादेश में अवश्य करें।
अर्थात- अगर कोई आरोपी गरीब, निर्धन या आर्थिक रूप से पिछड़ा है तब जुर्माने की राशि उस अनुसार ली जाएगी जिसे वह न्यायालय में दे सके। यानी कोर्ट आरोपी की आर्थिक स्थिति के आधार पर जुर्माने का निर्धारण करता है। नोट:- न्यायालय इस धारा के अनुसार जुर्माने की राशि को कम-ज्यादा कर सकता है लेकिन सजा में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं किया जा सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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