भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में सभी को जीवन जीने का अधिकार दिया गया है। पिछले लेख की धारा 305 में हमने आपको बताया था कि किसी पागल व्यक्ति या नाबालिग बच्चों को आत्महत्या के लिए उकसाना कितना गंभीर अपराध होता है। मगर किसी समझदार या वयस्क व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाना किस धारा के अंतर्गत दंडनीय अपराध होगा जानिए।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 306 की परिभाषा:-
कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को इस तरह से मजबूर कर दे कि वह आत्महत्या कर ले या ऐसे उकसाये या प्रताड़ित करे की वह मरने के लिए मजबूर हो जाए, तब ऐसा दुष्प्रेरण करने वाला व्यक्ति धारा 306 के अंतर्गत दोषी होगा। 【नोट :- दुष्प्रेरण के कारण से व्यक्ति की मृत्यु होने पर ही यह धारा लागू होगी】
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 306 के लिए दण्ड का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं है, यह संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध होते हैं, इनकी सुनवाई का अधिकार सत्र न्यायालय को होता है। सजा- इस अपराध के लिए दस वर्ष की कारावास और जुर्माने से दाण्डित किया जा सकता है।
महत्त्वपूर्ण वाद:- गिरिजा शंकर बनाम मध्यप्रदेश राज्य- इस वाद में बहू को ससुराल वालों ने प्रताड़ित किया, भूखा रखा तथा पति के लिए एक अन्य वधू की तलाश शुरू कर दी। बहू द्वारा आत्महत्या किए जाने पर ससुराल वालों को धारा 306 के अंतर्गत दोषी ठहराया गया क्योंकि उक्त सभी काऱण बहू को आत्महत्या करने के लिए दुष्प्रेरित करने के लिए पर्याप्त माने गए थे। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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