जितेन्द्र शर्मा। मध्य प्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग हाई स्कूल के छात्रों से विद्यालयों द्वारा ली गयीं अर्धवार्षिक परीक्षा और आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर वार्षिक परीक्षा फल तैयार करवाने जा रहा है। अब ये किस तर्क के आधार पर निर्णय लिया जा रहा है समझ से परे है!
औपचारिकतापूर्ण ऑनलाइन अध्यापन को छोड़ दिया जाए तो आधिकारिक रूप से मध्य प्रदेश के शासकीय विद्यालयों में अध्यापन के आदेश दिसम्बर 2020 के अंत में प्रसारित किए गए। जबकि अधिकांश निजी विद्यालयों द्वारा दिसंबर में ही औपचारिक ऑनलाइन अध्यापन के आधार पर ही अर्द्धवार्षिक परीक्षाएं आयोजित करवा दी गयीं। जिनमें परीक्षा परिणाम भी संतोषजनक नहीं रहा। अब यदि अर्द्धवार्षिक परीक्षा एवं आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर विद्यालयों (विशेषकर माध्यमिक शिक्षा मंडल से संबद्ध प्राइवेट स्कूलों) से वार्षिक परीक्षा फल तैयार करवाया जाता है तो इसमें छात्रों के अनुकूल परिणाम की आशा कैसे की जा सकेगी?
प्राइवेट स्कूलों द्वारा छात्र/अभिभावक पर छात्र हित में मूल्यांकन करने हेतु विभिन्न प्रकार के शुल्क जमा करने हेतु दबाव बनाया जा सकता है। कोरोना काल की मंदी में शुल्क जमा न करने की स्थिति में अथवा यदि कोई विद्यालय संचालक/अध्यापक यदि किसी छात्र /अभिभावक से द्वेष भावना रखते हैं तो वे पारदर्शितापूर्ण मूल्यांकन करेंगे इसकी क्या गारंटी है?
शासन पूर्ण रूप से शिक्षा माफिया की जकड़ में प्रतीत हो रहा है। अथवा शासन की मंशा निजी विद्यालयों को लाभ पहुंचाने की है जो इतना दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय लेने हेतु विवश है।
अतः छात्रों के हित में या तो बिना किसी मूल्यांकन के सीधे ही जनरल प्रमोशन कर दिया जावे अथवा पिछली कक्षा-9वीं के आधार पर परीक्षा फल घोषित कर दिया जावे। जितेन्द्र शर्मा, गुना।