यह घटना दुनिया के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज रहेगी और दुनियाभर के देश व संस्कृति इस घटना से सबक लेते रहेंगे। बात एक छोटी सी चिड़िया की है जिसे भारत में गौरैया कहा जाता है। चीन की सरकार ने एक अभियान चलाकर इस चिड़िया और उसके 1-1 अंडे को नष्ट कर दिया था जबकि भारत में गौरैया माता के मंदिर सदियों से स्थापित है। जानना और समझना जरूरी है कि सरकारों के फैसले किस आधार पर होते हैं और किस प्रकार वह जनता के लिए जानलेवा हो जाते हैं। चीन में इसी फैसले के कारण ढाई करोड़ लोग मर गए थे।
सबसे पहले चिड़िया के कारण चीन में आए अकाल की कहानी
उन दिनों चीन आर्थिक संकट से जूझ रहा था। 1958 में माओ जेडोंग (Mao Zedong), जिसे माओत्सेतुंग के नाम से भी जाना जाता है, ने एक मुहिम शुरू की नाम था Four Pests Campaign. इस अभियान के तहत सरकार ने 4 चार जीव जंतुओं को मार डालने का आदेश जारी किया। मच्छर क्योंकि मलेरिया फैलाता है। चूहा क्योंकि प्लेग फैलाता है। मक्खियां जिनसे हैजा फैलता है। और गौरैया चिड़िया। माओ जेडोंग का कहना था कि यह चिड़िया खेतों में खड़ी फसल के दाने खा जाती है। सरकार ने जनता को बताया कि इस अभियान से लोगों की जान और अनाज दोनों बचाएंगे।
अभियान में जनता से शामिल होने के लिए कहा गया। देखते ही देखते पूरे चीन में 300000 से ज्यादा लोग मक्खी, मच्छर, चूहा और चिड़िया को मारने निकल पड़े। सरकार ने कई तरह के उपकरण और संसाधन उपलब्ध कराएं। जो सबसे ज्यादा चिड़िया मारेगा वह सबसे बड़ा देशभक्त माना जाएगा। लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। गौरैया चिड़िया मारने के लिए लोगों को पुरस्कृत किया गया।
मात्र 2 साल बाद 1960 में चीन में नई समस्या पैदा हो गई। फसलों में टिड्डियों का प्रकोप शुरू हो गया। सरकार ने राज की रक्षा के लिए टिड्डियों को मारने का अभियान शुरू किया। Four Pests Campaign में से गौरैया का नाम हटाकर टिड्डियों का नाम जोड़ दिया गया, लेकिन इस बार सरकार का अभियान सफल नहीं हो पाया। लोगों ने जितनी टिड्डियों को मारा उसे ज्यादा पैदा होती चली गई, अनाज नष्ट होने लगा। चीन में अकाल पड़ गया। मात्र 2 साल में चीन में ढाई करोड़ से ज्यादा लोगों की इस अकाल के कारण मृत्यु हो गई। चीन के सरकारी रिकॉर्ड में भी डेढ़ करोड़ संख्या दर्ज है।
जनता को पता ही नहीं था कि इस अकाल का कारण भगवान नहीं सरकार है। विशेषज्ञों ने बताया कि गौरैया चिड़िया के खत्म हो जाने के कारण यह अकाल पड़ा है। क्योंकि गौरैया चिड़िया फसल के दाने नहीं बल्कि टिड्डियों को खाती थी। अच्छी बात यह है कि सरकार ने इसे मान लिया और गौरैया का पालन शुरू हुआ एवं चीन खत्म होने से बच गया।
भारत की संस्कृति को समझिए: गौरैया माता के मंदिर
वैज्ञानिक और विज्ञान अच्छी बात है परंतु विज्ञान के पुराने और प्रमाणित सिद्धांतों को सिरे से नकार देना हमेशा नुकसानदायक होता है। चीन में देश भक्ति के नाम पर जिस गौरैया चिड़िया को खत्म कर दिया गया था। भारत में धर्म के नाम पर उसी गौरैया चिड़िया का संरक्षण किया गया है। मध्य प्रदेश के छतरपुर, छत्तीसगढ़ के बालोद सहित भारत में कई स्थानों पर गौरैया माता के मंदिर स्थापित हैं। यह और बात है कि कुछ लोग इन मंदिरों को गौरी माता का मंदिर मानते हैं।
लव्वोलुआब, यह है कि भारत के प्राचीन वैज्ञानिकों (ऋषि-मुनियों) ने जान और अनाज की रक्षा के लिए सभी प्रबंध पहले से कर दिए हैं और उन्हें धर्म के साथ जोड़ दिया है। कृपया आधुनिक विज्ञान के नाम पर उसे नष्ट ना करें। वह लोग घर के आंगन में ऑक्सीजन का सिलेंडर रखते हैं और हम तुलसी का पौधा। यदि समझ में नहीं आता तो कृपया समझने की कोशिश करें।