👉 जीवन की "सफलता" "असफलता" पर हमारे व्यवहार की छोटी-छोटी बातों का भी बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। छोटी छोटी आदतें, स्वभाव की जरा-सी विकृति, रहन-सहन के गलत ढंग आदि सामान्य-सी बातें होने पर भी मनुष्य की उन्नति विकास, सफलता के मार्ग में रोड़ा बनकर खड़ी हो जाती है। किंतु इनका सुधार न करके लोग अपनी असफलताओं के दूसरे कारण गढ़कर अपने आपको संतुष्ट करने का असफल प्रयास करते हैं।
👉 किसी भी तरह के "चारित्रिक", "व्यावहारिक" दोष मनुष्य को "असफलता" और "पतन" की ओर प्रेरित कर सकते हैं। समाज में उसका मूल्य एवं प्रभाव नष्ट कर सकते हैं। महान पंडित, विज्ञानी, बलवान रावण केवल अपने अहंकार और पर-स्त्री हरण में ही नष्ट हो गया। सारे समाज ने, यहाँ तक कि पशु-पक्षियों तक ने उसका विरोध किया। इसी तरह इतिहास के पृष्ठों पर लिखी पतन की कहानियों में मनुष्य की चारित्रिक - हीनता ही प्रमुख रही है। "चरित्र" और "व्यवहार" की साधारण-सी भूलें मनुष्य की उन्नति एवं विकास का रास्ता रोक लेती हैं। दूसरी ओर छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने वाले जागरूक, तत्पर एवं रचनात्मक दृष्टिकोण वाले लोग असफलताओं के बीच भी सफलता के नए मार्ग ढूँढ़ निकालते हैं और उस हेतु व्यापक सहयोग-संबल प्राप्त कर लेते हैं।
👉 संसार में उन्नति करने और सफलता पाने की असंख्य दिशाएँ हैं। असंख्य लोग उनमें बढ़ते और सफल होने का प्रयत्न करते रहते हैं, किंतु कुछ लोग देखते-ही-देखते सफल हो जाते हैं और कुछ चींटी की चाल से रेंगते और तिल-तिल बढ़ते हुए जीवन-भर उतनी दूर तक नहीं जा पाते। दो विद्यार्थी परीक्षा देते हैं। उनमें से एक पास हो जाता है और दूसरा फेल। फेल होने वाला विद्यार्थी साल भर पढ़ता रहा, यथासाध्य अध्ययन में भी कमी नहीं की ,किंतु किन्हीं विशेष कारणों अथवा संयोगवश फेल हो जाता है। दूसरा पास होने वाला विद्यार्थी साल-भर खेलता-कूदता और मटर- गश्ती करता रहा। किताब को हाथ नहीं लगाता, किंतु परीक्षा में नकल द्वारा अथवा अन्य अनुचित उपायों से पास हो जाता है, तो क्या "यह" सफल और "वह" असफल माना जाएगा, नहीं। पढ़ने तथा परिश्रम करने के बाद भी संयोगवश फेल हो जाने वाला उसकी तुलना में सफल ही माना जाएगा।
👉 "सफलता" की कसौटी "परिणाम" नहीं बल्कि वह "मार्ग" है, वह "उपाय", वह "साधन" और वह "आधार" है, उन्नति एवं विकास के लिए जिन्हें अपनाया और काम में लाया गया है। इस विवेचना के प्रकाश में, सफलता के आकांक्षी की अपनी समझ है कि वह क्रियाविधि को महत्त्व देता है अथवा परिश्रम को। हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर विजयी हुआ, लेकिन इतिहास में राणा प्रताप की "शौर्यगाथा" ही गाई जाती है। प्रश्न जीत-हार का नहीं है, प्रश्न है कि कौन बहादुरी से लड़ा।