बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक महात्मा रहते थे। आसपास के गाँवों के लोग अपनी समस्याओं और परेशानियों के समाधान के लिए महात्मा के पास जाते थे और संत उनकी समस्याओं, परेशानियों को दूर करके उनका मार्गदर्शन करते थे।
एक दिन एक व्यक्ति ने महात्मा से पूछा - गुरुवर! संसार में खुश रहने का रहस्य क्या है? महात्मा ने उससे कहा कि तुम मेरे साथ जंगल में चलो, मैं तुम्हें ख़ुश रहने का रहस्य बताता हूँ।
उसके बाद महात्मा और वह व्यक्ति जंगल की तरफ चल दिए। रास्ते में चलते हुए महात्मा ने एक बड़ा-सा पत्थर उठाया और उस व्यक्ति को देते हुए कहा कि इसे पकड़ो और चलो। उस व्यक्ति ने वह पत्थर लिया और वह महात्मा के साथ-साथ चलने लगा।
कुछ देर बाद उस व्यक्ति के हाथ में दर्द होने लगा, लेकिन वह चुप रहा और चलता रहा। जब चलते-चलते बहुत समय बीत गया और उस व्यक्ति से दर्द सहा नहीं गया तो उसने महात्मा से कहा कि उसके हाथ में बहुत दर्द हो रहा है।
महात्मा ने कहा कि इस पत्थर को नीचे रख दो। पत्थर को नीचे रखते ही उस व्यक्ति को बड़ी राहत मिली।
तब महात्मा ने उससे पूछा - जब तुमने पत्थर को अपने हाथ में उठा रखा था तब तुम्हें कैसा लग रहा था? उस व्यक्ति ने कहा - शुरू में दर्द कम था तो मेरा ध्यान आप पर ज्यादा था, पत्थर पर कम था, लेकिन जैसे-जैसे दर्द बढ़ता गया, मेरा ध्यान आप पर से कम होने लगा और पत्थर पर ज्यादा होने लगा और एक समय मेरा पूरा ध्यान पत्थर पर आ गया और मैं इससे अलग कुछ नहीं सोच पा रहा था।
तब महात्मा ने उससे दोबारा पूछा - जब तुमने पत्थर को नीचे रखा तब तुम्हें कैसा महसूस हुआ?
इस पर उस व्यक्ति ने कहा - पत्थर नीचे रखते ही मुझे बहुत राहत महसूस हुई और ख़़ुशी भी महसूस हुई।
तब महात्मा ने कहा कि यही है ख़ुश रहने का रहस्य।
इस पर वह व्यक्ति बोला - गुरुवर! मैं कुछ समझा नहीं।
तब महात्मा ने उसे समझाते हुए कहा - जिस तरह इस पत्थर को थोड़ी देर हाथ में उठाने पर थोड़ा सा दर्द होता है, थोड़ी और ज्यादा देर उठाने पर थोड़ा और ज्यादा दर्द होता है और अगर हम इसे बहुत देर तक उठाये रखेंगे, तो दर्द भी बढ़ता जायेगा। उसी तरह हम दुःखों के बोझ को जितने ज्यादा समय तक उठाये रखेंगे हम उतने ही दुःखी और निराश रहेंगे। यह हम पर निर्भर करता है कि हम दुःखों के बोझ को थोड़ी सी देर उठाये रखते हैं या उसे ज़िंदगी भर उठाये रहते हैं।
इसलिए अगर तुम खुश रहना चाहते हो तो अपने दुःख रुपी पत्थर को जल्दी से जल्दी नीचे रखना सीख लो और अगर संभव हो तो उसे उठाओ ही नहीं।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि यदि हमने अपने दुःख रुपी पत्थर को उठा रखा है तो शुरू-शुरू में हमारा ध्यान अपने लक्ष्यों पर ज्यादा तथा दुःखों पर कम होगा, लेकिन अगर हमने अपने दुःख रुपी पत्थर को लम्बे समय से उठा रखा है तो हमारा ध्यान अपने लक्ष्यों से हटकर हमारे दुःखों पर आ जायेगा और तब हम अपने दुःखों के अलावा कुछ नहीं सोच पाएंगे और अपने दुःखों में ही डूबकर परेशान होते रहेंगे और कभी भी ख़ुश नहीं रह पाएंगे।
इसलिए अगर आपने भी कोई दुःख रुपी पत्थर उठा रखा है तो उसे जल्दी से जल्दी नीचे रखिये मतलब अपने दुःखों को, तनाव को अपने दिलो-दिमाग से निकाल फेंकिए और ख़ुश रहिए तथा परम सुख के लक्ष्य को साधिए।