DM-SDM स्त्री को कैद से छुड़ाने के लिए कब आदेश जारी कर सकता है - LEARN CrPC SECTION 98

Bhopal Samachar
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 97 जिला मजिस्ट्रेट, एसडीएम, या प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को शक्ति देती है कि वह किसी सदोष परिरुद्ध व्यक्ति की तलाशी के लिए वारण्ट जारी कर सकते हैं, एवं तलाशी पूर्ण होने पर व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना अनिवार्य होता है। लेकिन दण्ड़ प्रक्रिया की धारा 98 भी उसी के समानरूपी है या पर सिर्फ महिलाओं को कैद से वापस या छुड़ाने की शक्ति उपर्युक्त मजिस्ट्रेट को दी गई है।

दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 98 की परिभाषा:-

कोई भी स्त्री जो अठारह वर्ष से अधिक उम्र की हो या कोई भी बालिका जो अठारह वर्ष की कम उम्र हो (दोनो पर लागू होगी यह धारा)। कोई व्यक्ति उनकी मर्जी के बगैर विधि विरुद्ध कैद करके रखता है या माता, पिता, पति, कोई भी संरक्षक के पास जाने से उसे रोकता है तब ऐसा व्यक्ति शपथ पत्र के साथ जिला मजिस्ट्रेट (DM), उपखण्ड मजिस्ट्रेट (SDM),या प्रथम वर्ग के मजिस्ट्रेट को शिकायत कर सकता है। तब उपर्युक्त मजिस्ट्रेट का शिकायत का तुरंत संज्ञान लेकर स्त्री या बालिका को छुड़ाने के लिए आदेश जारी करेगा। मजिस्ट्रेट को अगर स्त्री को छुड़ाने के लिए ऐसे ही बल की आवश्यकता होगी वह उसका प्रयोग कर सकता है। (अर्थात किसी भी प्रकार का पुलिस बल हो सकता है या सेना भी।) स्त्री या बालिका को मजिस्ट्रेट वापस लाने के बाद उसके माता-पिता,पति, भाई या कोई भी संरक्षण होगा तुरंत सौप देगा।

नोट:- अगर 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की को उसके माता-पिता,या कोई संरक्षण की बिना अनुमति के उसकी मर्जी से भी अन्य व्यक्ति द्वारा पत्नी बनाकर रखना यह भी विधि विरुद्ध होगा। लेकिन मुस्लिम विधि कुछ और कहती है:- 

उधरणानुसार वाद:- मोहम्मद इदरीस बनाम स्टेट ऑफ बिहार:-

एक पंद्रह वर्षीया मुसलमान लडक़ी के पिता का अभिकथन था की विपक्षी संख्या 4 ने विवाह करने के उद्देश्य से उसकी लड़की का अपहरण किया था। लड़की ने मजिस्ट्रेट के समक्ष विवाह किया और यह भी कहा कि वह विपक्षी के साथ बिना किसी प्रलोभन के स्वतः गयी थी। मेडिकल रिपोर्ट यह कहती हैं कि लड़की 15 वर्ष से अधिक है लेकिन 18 वर्ष से कम उम्र की थी। यह बात सत्य हो सकती है कि भारतीय वयस्कता अधिनियम या भारतीय दण्ड संहिता की धारा 361 के अर्थों में अवयस्क हो सकती है, किन्तु मुस्लिम विधि (विशेष विधि) के अनुसार वह अपने प्राकृतिक संरक्षक की सहमति के बिना विवाह कर सकती थी। ऐसी स्थिति में उसका पति उसकी अभिरक्षा का हकदार होगा। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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