आपने अक्सर देखा होगा, देवी देवताओं की मूर्तियां पेड़ों के नीचे स्थापित की जाती है। कितना भी भव्य मंदिर क्यों ना हो, उस पेड़ को नुकसान नहीं पहुंचाया जाता जिसके नीचे भगवान की प्रतिमा विराजमान होती है। सवाल यह है कि इष्टदेव की प्रतिमाओं को पेड़ों के नीचे स्थापित क्यों किया जाता है। ताकि पूजा करने वाले लोग पेड़ की छांव में आसानी से पूजा कर सकें या फिर इसके पीछे कोई और साइंस भी है।
इंसानों को वायरस से बचाने के लिए पेड़ों को पूज्य बनाया गया था
पेड़ पूजनीय होते हैं, कुछ दशक पहले तक इस तरह की बातों को अंधविश्वास कहा जाता था परंतु आज सारी दुनिया इनके पीछे के साइंस को खोज रही है। एक वायरस ने वह हालात पैदा कर दिए हैं कि दुनिया भर के वैज्ञानिक मानव जाति के विकास की प्रक्रिया और परंपराओं का अध्ययन करने लगे हैं। अब तक के रिसर्च में एक बात सामने आ चुकी है कि पेड़ों से उत्सर्जित होने वाले ऑक्सीजन के कारण ही मनुष्य स्वस्थ रह सकता है। पेड़ जितना पुराना होता है, मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए उतना ही अधिक लाभदायक होता है। पेड़ों को काटने से बचाने के लिए उनकी नीचे भगवान की प्रतिमा स्थापित कर दी जाती थी, मंदिर बनाए जाते थे। याद रखिए यदि पृथ्वी पर ऑक्सीजन की मात्रा कम हो गई तो इस तरह के वायरस इतने बढ़ जाएंगे कि बस्तियों में अंतिम संस्कार करने वाले नहीं बचेंगे।
पेड़ों को पूजने की परंपरा कब से शुरू हुई
जितना पुराना भारत का इतिहास है उतनी ही पुरानी प्रकृति पूजा की परंपरा भी है। प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Age) से ही भारत में प्रकृति पूजा के प्रमाण मिले हैं। श्रीमद्भागवत गीता (वैदिक काल) के 15वे अध्याय में वर्णित है की जो प्रकृति से आया है, वह एक दिन प्रकृति में ही वापस चला जाएगा यानी की आत्मा जो कि अजर, अमर और अविनाशी है। वह किसी पेड़-पौधे या जीव जंतु के रूप में वापस प्रकृति में ही आ जाती है।
सिंधु घाटी सभ्यता से प्रकृति पूजा के साक्ष्य
सिंधु घाटी सभ्यता (2500 ईसा पूर्व से 1500 ईसा पूर्व) ज्ञात सभ्यताओं में सबसे प्राचीन सभ्यता है। इसे हड़प्पा कालीन सभ्यता (Harrapan civilization) भी कहा जाता है। इसी सभ्यता से प्रकृति पूजा के प्रमाण मिले हैं पूजा के प्रमाण मिले हैं जिसके साक्ष्य आज हमें कहीं ना देखने को मिलते हैं।
जैसे - पीपल और बरगद के पेड़ों पर जल चढ़ाना, उनकी पूजा करना, परिक्रमा करना यह सब प्रकृति पूजा के ही अंश हैं जो वर्तमान में भी दिखाई देते हैं।
देवी - देवताओं की मूर्तियों को पेड़- पौधों के नीचे स्थापित करना जिससे जब लोग देवी-देवताओं को जल चढ़ाएंगे तो पेड़-पौधों को भी जल मिल ही जायेगा।
वर्तमान में होने वाली घटना का संबंध भूतकाल से
कहा जाता है कि "इतिहास अपने आपको दोहराता है" (History repeats Itself) विशेषज्ञ बताते हैं कि वर्तमान में होने वाली घटनाओं का संबंध हमेशा, भूतकाल में हुई घटनाओं से होता है। दिन-ब-दिन बढ़ते हुए शहरीकरण और आधुनिकता के कारण पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की गई। सरकारी रिकॉर्ड में पुराने पेड़ की जगह नए पेड़ लगाए गए परंतु कमीशन की पट्टी आंखों पर पड़ जाने के कारण नेता इतनी सी बात नहीं समझ पाए कि एक पुराना पेड़ सैकड़ों नए पेड़ के बराबर ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है। यानी एक पेड़ काटने के बदले एक पेड़ लगाने से काम नहीं चलता। यदि महामारी से बचना है तो पेड़ों की कटाई पर 100% प्रतिबंध लगाना होगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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