ग्वालियर। विज्ञापनों एवं समर्थकों के बयानों में ज्योतिरादित्य सिंधिया कर्ण के समान दानवीर, भीष्म की तरह दृढ़प्रतिज्ञ और अर्जुन की तरह संवेदनशील नजर आते हैं परंतु उनके सिपहसालार नैतिकता के नियमों का हमेशा उल्लंघन करते मिलते हैं। डबरा की महिला नेता श्रीमती इमरती देवी, सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के अभिमान का प्रतीक हैं। निश्चित रूप से शुचिता की राजनीति की उम्मीद की जानी चाहिए लेकिन पहले मंत्री पद और अब मंत्री पद के कारण मिला सरकारी बंगला खाली करने का नाम नहीं ले रही हैं।
अधिकारियों में औपचारिक नोटिस देने की हिम्मत तक नहीं
श्रीमंत महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया का पावर देखिए। उनकी कृपा पात्र और डबरा से चुनाव हारी हुई महिला नेता इमरती देवी डेढ़ बीघा का सरकारी बंगला खाली नहीं कर रही और ग्वालियर के किसी अधिकारी में उन्हें औपचारिक नोटिस देने की हिम्मत तक नहीं है। कहते हैं एक बार एक अधिकारी ने नोटिस दिया था, 24 घंटे में उसका ट्रांसफर हो गया। श्रीमती इमरती देवी नवंबर 2020 में चुनाव हार गई थीं।
पहले मंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया था
इससे पहले भी इसी तरह के एक मामले में श्रीमती इमरती देवी काफी सुर्खियों में रही थी। साथियों के कारण नेता का सम्मान बढ़ता है तो लांछन भी लगते हैं। उस समय भी ज्योतिरादित्य सिंधिया पर लांछन लगे थे। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने श्रीमती इमरती देवी को बिना चुनाव लड़े, कैबिनेट मंत्री बना दिया था। चुनाव हारने के बाद मंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए, एदल सिंह कंसाना ने तत्काल इस्तीफा दे दिया था लेकिन श्रीमती इमरती देवी का इस्तीफा कराने में पसीने निकल गए थे।