सम्पूर्ण भारतीय दण्ड, 1860 में समय-समय पर कई संशोधन किए जाते रहे हैं। उद्देश्य है कि समाज में घटने वाले हर प्रकार के अपराध के लिए दंड निर्धारित किया जाए और भविष्य में संभावित अपराधियों को भी सूचीबद्ध कर लिया जाए परंतु कई बार कोई ऐसा अपराध होता है जिसका उल्लेख IPC में नहीं होता। सवाल यह है कि इस तरह के अपराध में अपराधी को किस धारा के तहत दंडित किया जाएगा।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 511 की परिभाषा:-
ऐसे किसी अपराध का प्रयत्न करना जो भारतीय दण्ड संहिता के किसी भी धारा के अंतर्गत उल्लेखित ना किया गया तो तब ऐसे प्रयास को धारा 511 के तहत अपराध माना जाएगा और अपराधी को दंडित किया जाएगा।
प्रयत्न और तैयारी के अपराध में सामान्य अंतर
किसी भी अपराध की तैयारी कैसे तात्पर्य, अपराध के लिए जानकारी, हथियार एवं उपकरण का संग्रहण इत्यादि करना और प्रयत्न से तात्पर्य अपराध का प्रयास करना, जो अपराध की तैयारी के बाद का चरण है। प्रयास में अपराधी सफल नहीं होता परंतु वह अपराध करने की नियत से कोई गतिविधि करता है।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 511 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-
धारा 511 के अपराध उसी अपराध की धारा के अनुसार समझौता योग्य होंगे या नहीं जिस अपराध का वह प्रयत्न कर रहा है अर्थात:-चोरी का प्रयत्न कर रहा है तब चोरी के अपराध को देखा जाएगा। इस धारा के अपराध संज्ञेय/असंज्ञेय पूर्ण अपराध को देख कर होंगे, यह जमानतीय एवं अजमानीय होंगे। इनकी सुनवाई का अधिकार क्षेत्र वही न्यायालय होगा जिस अपराध का आरोपी ने प्रयत्न किया था। सजा- इस अपराध के अंतर्गत सजा का प्रावधान उस पूर्ण अपराध के आधे (हाफ) कारावास से दाण्डित होगा।
सरल शब्दों में समझा जाए तो अगर कोई व्यक्ति कोई चोरी करने का प्रयत्न करता है, और वह चोरी नहीं कर पाता है सिर्फ कोशिश तक ही सीमित रहता है ऐसे आरोपी पर धारा 511 के अंतर्गत मामला दर्ज होगा लेकिन अपराध धारा 379 के अनुसार संज्ञेय एवं अजमानीय होगा। सुनवाई भी उसी न्यायालय में होगी जहाँ चोरी के अपराध की होती है, लेकिन सजा चोरी के अपराध में होगी अर्थात तीन वर्ष की या जुर्माना या दोनो की, उस के स्थान पर आधी सजा अर्थात डेढ वर्ष (1 वर्ष छः माह) की कारावास या जुर्माना या दोनो हो सकती है।