हमने आपको दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 71 में बताया था कि अगर कोई ऐसा अपराध किया गया है जो जमानतीय है, तब ऐसे व्यक्ति को पुलिस थाने से जमानत मिल जाती है कुछ जमानतीय शर्तो के अनुसार। लेकिन क्या कोई आरोपी जिसे कोई जमानतीय अपराध किया है और वारण्ट मिलने के बाद वह बिना पुलिस की अभिरक्षा मे डारेक्ट न्यायालय में पेश हो जाए तब क्या न्यायालय उसे जमानत दे सकता है? जानिए इसका जबाब धारा 88 में।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 88 की परिभाषा (सरल एवं स्पष्ट शब्दों में):-
जब किसी व्यक्ति को न्यायालय का पीठासीन अधिकारी हाजिर होने या गिरफ्तार करने के लिए न्यायालय समन या वारण्ट जारी करने का अधिकार रखता है, तब वह व्यक्ति बिना पुलिस की अभिरक्षा या किसी अन्य व्यक्ति की अभिरक्षा के न्यायालय में पेश होगा तब न्यायालय ऐसे व्यक्ति से बंध-पत्र लेने की शक्ति रखता है अर्थात वह व्यक्ति को जमानत पर छोड़ दिया जायेगा। बन्ध-पत्र की शर्तों के अनुसार जब न्यायालय उसे कार्यवाही के लिए बुलागा उसे न्यायालय में हाजिर होना होगा।
उधरणानुसार वाद:- नटवर फरीदा बनाम स्टेट ऑफ उड़ीसा राज्य- उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया था कि न्यायालय को आरोपी को अभिरक्षा में रिमाण्ड करनें की शक्ति तब तक नहीं है जब तक कि विधि के द्वारा उसे प्रदान न की गई हो। यह धारा उस व्यक्ति के ऊपर लागू होती है, जो डायरेक्ट न्यायालय में उपस्थित है और स्वतंत्र है क्योंकि इसके अंतर्गत वह दूसरे दिन न्यायालय के समक्ष हाजिर होने के लिए बाध्य हैं। लेकिन जहाँ पर व्यक्ति पहले से ही गिरफ्तार किया गया है और पुलिस या अन्य अभिरक्षा में है, तब उसकी हाजिरी उसकी स्वेच्छा पर निर्भर नहीं करती वरन उस व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करती हैं जिसकी अभिरक्षा में वह है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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