दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 93 बताती है कि तलाशी वारण्ट न्यायालय जाँच, अन्वेषण, विचारण के समय को व्यक्ति दस्तावेज पेश नहीं करता तब न्यायालय तलाशी वारण्ट जारी करके तलाशी या निरीक्षण करवा सकता है, लेकिन धारा 93 में किसी व्यक्ति की शिकायत पर जहाँ शिकायत का सत्य होना प्रमाणित तो तब कोई भी मजिस्ट्रेट तलाशी वारण्ट जारी कर सकता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 94 की परिभाषा:-
1. उपखण्ड मजिस्ट्रेट, जिला मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट को सूचना प्राप्त हो और सामान्य जाँच के बाद लगता है कि उस स्थान पर कोई चुराई संपत्ति, कोई आपत्तिजनक वस्तु, कूटरचित दस्तावेज, नकली मुद्रा आदि का व्यापार चलता है या छुपाई गई है तब उपर्युक्त मजिस्ट्रेट पुलिस कांस्टेबल के ऊपर के किसी भी अधिकारी को वारण्ट द्वारा यह अधिकार निम्न अधिकार देगा:-
(क). उस स्थान में सावधानीपूर्वक प्रवेश करे।
(ख). वारण्ट के नियमों के अनुसार ही तलाशी ले।
(ग).अगर तलाशी के समय पाई गई, चोरी की संपत्ति, कूटरचित दस्तावेज, आपत्तिजनक सामग्री को तुरंत अपने कब्जे में ले।
(घ). तलाशी के में मिली संपत्ति, वस्तु या अपराधी को तुरंत मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करे यदि संपत्ति आँचल है तो उसे अभिरक्षा में सुरक्षित रखे।
(ङ). ऐसे स्थान पर पाएं गए प्रत्येक व्यक्ति को गिरफ्तार करके अपनी अभिरक्षा में ले और सभी व्यक्ति जो चुराई संपत्ति, अश्लील वस्तु, कूटरचित दस्तावेज के साथ मिलते हैं उन्हें मजिस्ट्रेट के समक्ष 24 घण्टे के अंदर पेश करे।
2. वह संपत्ति या वस्तु जिस पर धारा 94 लागू होगी:-
(क). नकली सिक्के।
(ख). धातु टोकन अधिनियम,1889 उल्लंघन में बनाए गए नकली धातु एवं सीमाशुल्क अधिनियम,1962 की धारा 11 के अधीन तत्समय प्रर्वत्त किसी अधिसूचना के उल्लंघन में भारत लगये गए धातु।
(ग). कूटकृत करेंसी नोट, कूटकृत स्टाम्प पेपर।
(घ). कूटरचित कोई दस्तावेज।
(ङ). नकली मुद्राएँ(भारतीय, विदेशी दोनों)।
(च). भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 292 के अंतर्गत को अश्लील वस्तु, चीज, पुस्तकें जिससे व्यक्ति गलत प्रभाव पड़ता है।
(छ). उपर्युक्त नियम क से च तक उल्लेखनीय कोई ऐसे सामग्री,उपकरण होना जिससे इनका उत्पादन होता है उस पर भी यह धारा लागू होगी।
उधरणानुसार वाद:- विकास बुक एजेंसी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य- वाद में उच्च न्यायालय ने निर्णीत किया था कि तलाशी वारण्ट का जारी किया जाना एक न्यायिक कार्य है इसलिए मजिस्ट्रेट को न्यायिकत कार्य करना चाहिए, कोई मनमाने ढंग से नहीं। उसे अपने विश्वासों के आधार का उल्लेख करना चाहिए। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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