जेल में बंद कैदियों को कोर्ट द्वारा सजा सुनाई जाती है परंतु राज्य सरकार द्वारा उन्हें कई प्रकार की राहत दी जाती है। आजीवन कारावास से तात्पर्य होता है मृत्यु तक जेल में बंद रखना परंतु आईपीसी की धारा 57 के तहत राज्य सरकार आजीवन कारावास से दंडित कैदी को 20 वर्ष के बाद जेल से मुक्त कर सकती है। सवाल यह है कि यदि अपराधी किसी दूसरे राज्य की जेल में ट्रांसफर हो जाए तो उसकी रिहाई की मंजूरी कौन सी राज्य सरकार देगी।
यदि सरकार ना चाहे तो क्या कोर्ट रिहा कर सकती है
मध्यप्रदेश राज्य बनाम रतन सिंह मामले में आवेदक रतन सिंह को धारा 302 भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत आजीवन कारावास से दाण्डित किया गया था। 25 वर्षों की कारावास की सजा भोगने के पश्चात उसने अपनी रिहाई के लिए सरकार को आवेदन किया जिसे वहाँ की राज्य सरकार ने नामंजूर कर दिया। इसके विरुद्ध उसने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिसे स्वीकार करते हुए न्यायालय ने उसे छोडे जाने के आदेश दिये। राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की। राज्य की अपील को स्वीकार करते हुए उच्चतम न्यायालय ने विनिशिचत किया कि राज्य के आदेश में उच्च न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप किया जाना अनुचित था, क्योंकि इस संबंध में राज्य का आदेश ही सर्वोपरि होता है।
उधरणानुसार वाद:- मध्यप्रदेश राज्य बनाम रतन सिंह
मामले में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट करते हुए निर्णय दिया कि ऐसे प्रकरणों में समुचित सरकार वही राज्य होगा जिसमें की अभियुक्त का दोषसिद्ध हुआ है, न कि वह राज्य जहाँ उसे करावधि के दौरान स्थानांतरित किया गया है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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